ये यूपी है, उम्मीदों पर खरी न उतरने वाली सियासत को लात मारकर भगा देना इसकी फितरत है...


तारीख 3 दिसंबर 2018, जगह बुलंदशहर का स्याना थाना क्षेत्र. दोपहर में तकरीबन 10-11 बजे महाव गांव के एक रेलवे क्रासिंग के पास भीड़ जमा हुई और प्रदर्शन करने लगी. भीड़ के प्रदर्शन का कारण था, पास के जंगल में लगभग 50 गायों के शव का मिलना.  अंदाज़ा लगाया गया कि एक खास संप्रदाय के लोगों ने गोकशी की है और गौ का अपमान कर हिन्दू आस्था को ठेस पहुंचाई है. भीड़ को हिंसक होते देखकर स्याना थाने के SHO यानी स्टेशन हाउस ऑफिसर सुबोध कुमार सिंह अपने दल-बल के साथ भीड़ को शांत करने पहुंचे. भीड़ पहले से ज़्यादा आक्रामक हो गई और फिर वो हुआ जो प्रदेश की सत्ता पर बैठे योगी आदित्यनाथ की कानून व्यवस्था की कलई खोल गया. भीड़ ने सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी. वायरल वीडियो में जो चेहरा सामने आया वह बजरंग दल के जिला संयोजक योगेश राज का था, जिसपर यह मामला दर्ज किया गया कि वही सुबोध कुमार सिंह का हत्यारा है. इस हिंसक भीड़ में एक और व्यक्ति की जान गई जिसका नाम था सुमित कुमार.

मामले को तूल पकड़ते देख योगी शासन-प्रशासन हरकत में आई और तुरंत आदेश जारी हुआ.  आदेश सुबोध कुमार सिंह या सुमित कुमार की मौत की जाँच के बजाय यह था कि गौकशी को रोकने के त्वरित उपाय किये जाएं और इसमें लिप्त व्यक्ति को किसी भी सूरत में बख्शा न जाए. खैर मामले पर जाँच अभी भी चल रही है. योगेश राज के साथ ही अब तक कुल 31 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं.

दूसरी घटना, दिसंबर 2018 की 29 तारीख, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गाज़ीपुर रैली के चंद घंटों बाद ही एक और पुलिसवाला हिंसक भीड़ के हत्थे चढ़ गया और मौके पर जान गँवा दी. इस बार मामला आस्था या गोकशी का नहीं बल्कि भीड़ को मिलते बढ़ावे का प्रतिफल था. प्रदेश सरकार के आरक्षण सम्बन्धी नीतियों का विरोध कर रहे निषाद समुदाय को प्रधानमंत्री की रैली में जाने से मना किया गया तो भीड़ ने सड़क जाम कर अपना विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. भीड़ यहीं नहीं रुकी. रैली से लौट रहे कांस्टेबल सुरेश वत्स ने जब भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश की तो भीड़ ने पथराव करना शुरू कर दिया. इसी में से एक पत्थर सुरेश वत्स के सिर पर आ लगा वह वहीं ऑन ड्यूटी मारे गए.

ऊपर दी गई दो घटनाओं में समानता की बात करें तो पहली नज़र में ही यह पता चल जाता है कि दोनों घटनाओं में पुलिस वाले  भीड़ की हिंसा का शिकार हुए. एक और समानता जो है, वह है इन पुलिसवालों के परिवार का वह बयान जो योगी सरकार की कानून व्यवस्था की पोल खोलकर इसके होने पर ही सवाल खड़ा कर देता है. वह बयान जिसमे उन्होंने सवाल किया था कि ''जिस व्यवस्था में खुद पुलिस सुरक्षित नहीं है, वह किसी आम नागरिक की सुरक्षा कैसे कर सकती है?''

योगी सरकार के कानून व्यवस्था की कलई केवल इन्ही दो घटनाओं में नहीं खुली है बल्कि उसकी फेहरिस्त काफी लम्बी है.

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के चंद महीनो बाद ही मई 2017 में सहारनपुर में हुई जातिगत संघर्ष में एक की जान चली गई थी और तमाम घायल हो गए थे.

उसके बाद वर्ष 2018 की शुरुआत में ही पश्चिमी यूपी के कासगंज में झंडा फहराने व 'भारत माता की जय' के लिए हुई सांप्रदायिक हिंसा भी योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में हुए दंगों की फेहरिस्त में जुड़ी अगली कड़ी है.
उपर्युक्त लिखी गई घटनाएं वे घटनाएं हैं जिन्हे आसानी से कलमबंद किया जा सका है. नहीं तो लखनऊ में पुलिस की गोली का शिकार हुए विवेक तिवारी हत्याकांड को कौन भूल सकता है.

मजेदार बात यह कि 3 जनवरी को योगी आदित्यनाथ ने एक ट्वीट किया जिसमे उन्होंने दावा किया कि उनके दो साल के कार्यकाल में एक भी दंगा नहीं हुआ है. उनके इस दावे की पोल केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा फरवरी 2018 संसद में पेश किया गया एक आंकड़ा खोल देता है. फरवरी 2018 में संसद में गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़े बताते हैं कि 2017 में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में उत्तर प्रदेश शीर्ष स्थान पर था.

वहीं द क्विंट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के हवाले से यह बताया गया है कि वर्ष 2018 में 26 दिसंबर तक दर्ज 93 ऐसे मामले दर्ज हुए हैं जो धार्मिक पूर्वाग्रहों से प्रेरित थे. यह संख्या पिछले एक दशक में दर्ज हुए ऐसे ही मामलों में सबसे अधिक है. दिलचस्प बात यह है कि योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश में ऐसे हमलों की संख्या सबसे अधिक 27 थी.

गुंडाराज का ख़ात्मा कर रामराज का सपना दिखाकर यूपी की जनता से दिल खोलकर वोट लेने वाली भाजपा सरकार पर यही सपना कहीं भारी न पड़ जाए क्योंकि लोकसभा का चुनाव आने वाला है और यूपी की जनता वादों पर खरा न उतरने वालों को दोबारा मौका नहीं देती. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी इस दर्द को बेहद करीब से महसूस कर चुके हैं.

टिप्पणियाँ

  1. यूपी की जनता विगत पंदह वर्षों में वादे तोड़ने वालों को सत्ता से बाहर का मार्ग दिखाकर एक उत्तम परम्परा स्थापित कर चुकी है । आशा है, निर्दोष प्रेमी युगलों पर अत्याचार करने वाले एंटी रोमियो स्क्वाड को ही रामराज का पर्याय मान बैठी योगी जी की सरकार इसे भूलेगी नहीं ।

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  2. यकीनन याद रखेगी माथुर जी ..

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