बाल दिवस पर विशेष - "हिन्दू-मुसलमान एकता की जय"!





तो हुआ यूँ कि एक बार धर्म द्रोही चाचा नेहरू बनारस में अपनी मोटर पर बैठे कहीं जा रहे थे.. बनारस तब आज का क्योटो नहीं था और अंग्रेजों ने चौड़ीं सड़कों का विकास करने के लिए तंग गलियों का तोड़ी फोड़ीकरण नहीं किया था.. खैर, एक जगह चाचा ने देखा कि एक जुलुस उनकी तरफ चला आ रहा है.. जुलुस करीब पहुंचा तो चाचा ने एक करिश्मा देखा.. देखा कि जुलुस में मंदिरों के टीका-तिलकधारी पुजारियों के साथ मस्जिद के मुल्ला-मौलवी बड़ी उमंग के साथ के झंडा लिए हुए आगे बढ़े जा रहे हैं.. झंडे में जगमगाते अक्षरों में लिखा है- "हिन्दू-मुसलमान एकता की जय!"

नेहरू बड़े खुश! साथ ही उनको यह जानने की खुजली भी हुई कि आखिर "माजरा क्या है?". वह अपने साथ देवदास गाँधी समेत कुछ अन्य लोगों की मण्डली के साथ मोटर से उतर जुलुस में शामिल हो लिए.. भीड़ कुछ आगे बढ़ी.. चाचा को जुलुस में मौजूद जुलूसियों से पता चला कि यह एकता 'शारदा विधेयक' की मुखालफत में हुई है.. शारदा विधेयक 14 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी न करने के बारे में था.. 

तो दोनों मजहबों के ठेकेदार लड़कियों के मासिक धर्म के बाद होने वाले विवाह को धर्म-विरुद्ध मान रहे थे, सो पुरुष एकता स्थापित कर ली.. खैर, आगे बढ़ते तब तक भीड़ ने अपने से अलग भेष-भूषा वाले चाचा एंड कम्पनी को जुलुस से रुखसत कर दिया.. अलग भेषभूषा मतलब 'चाचा एंड कम्पनी ने न तो टीका लगया था न ही वह दाढ़ी वाले थे..

खैर, चाचा एंड कंपनी को इस जुलुस में रुकने में अब कोई दिलचस्पी भी नहीं रही.. प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल सर की किताब 'कौन हैं भारत माता?' में एक अध्याय में इस घटना का उल्लेख है.. जिसमें उन्होंने जवाहर लाल नेहरू वांग्मय का हवाला देते हुए लिखा है कि जुलुस में चाचा के खिलाफ गंदे नारे लगाए गए और धक्का-मुक्की भी की गई.. फ़िलहाल टाउन हॉल पहुँचते-पहुँचते किसी वजह से ईंट पत्थर चलने लगे और किसी ने कुछ पटाखे छोड़ दिए तो एकता वाले तीतर-बितर होकर बड़ी ही फुर्ती से भाग खड़े हुए..

इस बीच जब भी शारदा विधेयक का जिक्र होता और फिर प्रतिक्रिया आती तो अंग्रेज सरकार कुछ मोहलत देती.. इस मोहलत की अवधि बच्ची दुल्हनों की बाढ़ आ जाती.. जिसमे रूढ़िवादी हिन्दू-मुसलमान एक हो जाते और फिर साठ साल के नामचीन वैद्य सहित एक बड़ी जनसँख्या अंग्रेजी सरकार के विरोध में 14 साल से कम उम्र की बच्चियों को अपनी धर्मपत्नी-शरीक ए हयात बना लाते..

फ़िलहाल 28 सितंबर 1929 को शारदा अधिनियम लागू हुआ लेकिन मजहबी एकता वाले अंग्रेज सरकार की मुखालफत में मासिक धर्म शुरू होने से पहले ही लड़कियों का ब्याह करते रहे और स्वाधीनता संघर्ष में अपना योगदान देते रहे.. 

"हिन्दू-मुसलमान एकता की जय"!

टिप्पणियाँ

  1. हम्म ... । ग़लत कामों के लिए तो लोग एक हो ही जाते हैं। अकेले तो वे पड़ जाते हैं जो सही सोचते हैं, सही करते हैं, सही राह चलते हैं।

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  2. मदन मोहन मालवीय इसके बहुत प्रखर विरोधी थे। age of consent को लड़कियों के लिए 9 वर्ष रखना चाहते थे

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