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कोरोना संकट के दौरान बेरोजगार और बेघर हुए दुनिया भर के मजदूर, क्या एक होकर मांगेंगे अपना हक़?

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कहते हैं जहाँ समस्याएं अपनी हद पार करने लगती हैं, समाधान अपना रास्ता वहीं से निकालता है, जैसे दाब जब अपने ऊपर रखी किसी भारी चीज से ज्यादा शक्तिशाली हो जाता है, वह उसे पलट कर सीधा बाहर निकल आता है, ठीक वैसे ही। ऐसा ही कुछ हुआ औद्योगिक क्रांति के गढ़ संयुक्त राज्य अमेरिका में। जहाँ पूजीपतियों की औद्योगिक आकांक्षाओं ने अपने मातहत काम करने वाले मजदूरों को बस मशीन समझा और बेहद ख़राब परिस्थितियों में भी उन्हें काम करते रहने को मजबूर करते रहे। 19 वीं शताब्दी के दौरान, औद्योगिक क्रांति के चरम का नुकसान संयुक्त अमेरिका के हजारों पुरुष, महिलाएं और बच्चे अपनी असामयिक मौत और अपने अंगभंग से पूरी कर रहे थे। ये कामगार 15 से १८ घंटे बिना किसी सुरक्षा सुविधा के लगातार काम करते थे, लेकिन इनके काम की कमाई का हिस्सा पूंजीपतियों की जेब और उनकी ऊँची महत्वाकांक्षाओं में खर्च हो जाता था। हाड़तोड़ मेहनत के बदले कामगारों के हिस्से आती भूख, बीमारी और अकाल मौत।  इन अमानवीय स्थितियों को समाप्त करने के प्रयास में, 1884 में फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन्स (जो बाद में अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर, य

लौटा है प्यार

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नीलम ने दिन भर के काम के बाद थक कर घर आते ही देखा, सामने दीवार पर टंगी घड़ी हल्की सी तिरछी हो गई है और उसके पास टंगी पेंटिंग के पीछे छिपकली पूंछ हिलाती अपने कारनामे का बखान कर रही है.. काम की फ्रस्ट्रेशन हाथ पर आ टिकी और हाथ की फाइल पेंटिंग पर दे मारी. लेकिन चिरकुट छिपकली पर कोई आंच नहीं आई, वह दनदनाती फिर से घड़ी के पीछे जा छिपी. चिड़चिड़ करती नीलम ने फिर फाइल वाला फार्मूला घड़ी पर ट्राय करना चाहा लेकिन नुकसान के आभास ने उसके हाथों को ऐसा करने से रोक दिया. प्यास लगी है  और घर में कोई पानी देने वाला भी नहीं, हम्मह्! ये भी कोई जिंदगी है? जहां घर लौटने पर कोई बात तक करने वाला न हो! दिन भर की ग्रह दशा किसे सुनाऊँ? किससे पता चले कि पड़ोस के घर की लड़की का अफेयर उसके पड़ोस वाले वर्मा जी के बेटे से चल रहा है? किससे पता चले कि वर्मा अंकल खुद किसी ज़माने में अपनी सोसाइटी के रांझणा हुआ करते थे? खैर अब खुद ही मटके से पानी उड़ेला और एक साँस में गटक गई.. नीलम पिछले 6 साल से दिल्ली में अकेली रह रही है. कॉलेज की पढ़ाई के बाद प्यार में जब दिल टूटा तो खुद को बिजी रखने और अपनी रोनी सूरत घ

Freedom Of Bleeding

गुजरात मॉडल जिसे केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के उस बयान के साथ पढ़ा जाना चाहिए जिसमे सबरीमाला मंदिर में रजस्वला स्त्रियों के प्रवेश पर कहा था कि क्या सेनेटरी नैपकिन के साथ भगवान/दोस्त के घर पर जाना सही है? उस वक़्त स्मृति जी गुजरात से राज्यसभा सांसद थीं। वही गुजरात जिसके भुज में एक कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियों के अंडरवियर उतरवाकर उसमे रजस्वला के रक्त जांचे गए जिससे पता चले कि पीरियड होने की स्थिति में किसने रसोई और मंदिर में प्रवेश करने की हिमाकत की! वही देश जिसके प्रधानमंत्री  ने बढ़ चढ़ कर 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान का ड्रामा किया उसी प्रधानमंत्री के गृह राज्य में लड़कियों की अंडरवियर का खून चेक किया गया। जी वही अंडरवियर जिसके खाकी कह भर देने से बीजेपी की एक लोकसभा प्रत्याशी ने रामपुर में रो-रोकर संवेदनाएं हासिल करने की कोशिश की थी, हालाँकि नाकाम रहीं थीं। वही देश जहाँ 'कामाख्या देवी' के रक्तरंजित कपड़ों को सिर माथे लगाने का पाखंड रचा जाता है। यह वही देश है जहाँ सेनेटरी पैड पर बनी फिल्म 'पैडमैन' करोड़ों का बिजनेस करती है, लेकिन दुकान पर आज भी सेनेटरी पै

नोटोरियस पोहे का अप्रूवल

सुन भाई! वो दिखी कि नहीं? कमलेश से सुजीत से पूछा तो जवाब मिला 'नहीं यार! आने को तो बोली थी पर जाने क्यों नहीं आई'. चंचल का इंतजार करते एक घंटे से ऊपर हो गए थे. कमलेश, सुजीत और चंचल गहरे दोस्त हैं .. सुजीत और चंचल की दोस्ती में प्रेम की कोंपलें भी फूटने लगीं हैं. आज तीनों ने बसंत कार्निवाल जाने का प्लान बनाया है. जब इंतजार करते दो घंटे से ज़्यादा बीत गए तो झुंझलाते हुए सुजीत ने कमलेश से चंचल को फोन करने को कहा. सुजीत के झुंझलाहट के शोले तब और ज़्यादा भड़क गए जब पता चला कि जनाब के मित्र महोदय अपना फोन जल्दी-जल्दी में घर छोड़ आए हैं. सुजीत ने अपने फोन से ट्राय किया तो चंचल का नंबर बंद आया. अब गुस्से की जगह चिंता ने ले ली. क्या किया जाए, चंचल के घर जा भी नहीं सकते, नहीं तो आन्टी जी के नोटोरियस पोहे खाने पड़ेंगे! और दुनिया भर के सवाल-जवाब में उलझा देंगी सो अलग.. क्या किया जाय - क्या किया जाय.. खैर, चंचल की चिंता आंटी जी के पोहों पर हावी हो गई.. दोनों चंचल के घर पहुंचे तो देखते हैं कि बाहर लॉन में बसंत छाया हुआ है. वहां मौजूद सभी लोग सरसों के फूल हुए पड़े हैं. सजावट में

तुम्हारे इयरफोन तक पहुंचने की ख्वाहिश

छुप-छुप कर से देख रही हूँ तुम्हें.. पिछले कई दिनों से... वो जो तुम कान में ठूंठ घुसेड़ कर मटकते हुए चलते हो ना, उस मटकाऊ गाने का राज जानने को बेताब हूँ. चाहती हूँ कि उसमें से एक ठूंठ तुम मेरे कान में लगाओ और दूसरा अपने कान में.. फिर दुनिया जहान को भूलकर, लाज शरम परे रखकर दोनों साथ-साथ थिरकें. वैसे कौन सा गाना सुनते हो जी जो इतनी लय में रहते हो? साफ-साफ बताए देते हूँ, घुमा फिराकर बात करनी आती नहीं ना मुझे..सो मुझे हिन्दी गाने ही समझ आते  हैं. जबकि तुम्हारी मटकानी चाल देखकर लगता है कि तुम hip-hop ही सुनते हो. तुम्हारी पसंद को कई दफे सुनकर समझना चाहा, झूठ मूठ की मटकी भी, लेकिन मजा नहीं आया. वो तड़क भड़क वाले आंवा जांवा वाले गाने पल्ले ही नहीं पड़ते, क्या करूँ! उस रोज जब तुम कान में ठूंठ लगाए बाइक से चौक की दूसरी गली मे गए थे ना, मैं वहीं अपनी ड्रेस खरीदने गई थी. तुमने रेड कलर के चेक वाली शर्ट पहनी थी, कमाल लग रहे थे, सच में! मैं बसंत पंचमी के लिए पीले रंग की ड्रेस लेने गई थी. लेकिन तुम्हें देखकर रेड कलर की ड्रेस ले बैठी. अगली बार जब तुम वही शर्ट पहनोगे ना, मैं भी रेड ड्रेस पहनू

इश्क़ समंदर

'फ़िल्मों में जब समंदर देखती थी तो लगता कि अभी ही सारा नमक मुझ पर आ गिरेगा.. अरे, स्कूल में पढ़ाया गया था ना कि समंदर का पानी खारा होता है और नमक उसी से बनता है. तो बस जब फ़िल्मों में देखती कि लोग उसमें खेल रहे हैं और तमाम ऐडवेंचर कर रहे हैं तो सोचती, कितने खारे होते होंगे ये लोग!.. फिर एक रोज हमारे पड़ोस में कुमार अंकल की फ़ैमिली रहने आई. कुमार अंकल, नेवी से रिटायर हुए थे. पड़ोसी होने के नाते दोनों घरों के बीच मेलजोल बढ़ गया.. कुमार अंकल हमें समंदर के बड़े किस्से सुनाते.. वे किस्से मेरे मन से समंदर के लिए जो खारापन था, वे सब एक एक करके मिटा रहे थे. कुमार अंकल की फ़ैमिली में वो, उनकी पत्नी सुषमा, एक बेटा सुशांत और बेटी कृतिका थे. कृतिका और मैं हमउम्र थे, दोनों में बहुत बनती.. दोनों ने साथ में ग्रैजुएशन किया.. कृतिका को बैंकिंग में अपना भविष्य दिख रहा था और मुझे समंदर के खारेपन को करीब से जानना था. कृतिका को मेरे साथ समंदर के खारेपन को महसूस करना था.. सो घर से दोनों निकल लिए समंदर घूमने... दो दिनों बाद हम दोनों अपने मुक़ाम पर खड़े हैं.. समंदर की गिरती उठती लहरें जैसे जिंदगी

आईसीजे की म्यांमार को दो टूक 'रोके रोहिंग्या नरसंहार', जानें पूरा मामला..

नीदरलैंड स्थित संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत ने 23 दिसंबर को बौद्ध राष्ट्र म्यांमार से अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के कथित नरसंहार को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने के लिए कहा। अंतर्राष्ट्रीय अदालत का यह आदेश वर्ष 2017 में रोहिंग्या मुसलमानों पर म्यांमार के सैन्य हमले पर न्याय के रूप में आया है जिस सैन्य कार्रवाई में 740,000 रोहिंग्या पड़ोसी बांग्लादेश भाग गए। अफ़्रीकी राज्य जाम्बिया ने 1948 के जेनोसाइड कन्वेंशन के तहत हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय से आपातकालीन कदम उठाने की याचिका की थी जिसके बाद न्यायालय ने सुनवाई की। पीठासीन न्यायाधीश अब्दुलकवी अहमद यूसुफ ने कहा कि म्यांमार को कन्वेंशन के अनुसार "यथाशक्ति रोहिंग्या नरसंहार को तत्काल   रोकने व सभी उपाय करने होंगे"। सुनवाई के दौरान कहा गया कि नरसंहार में '' समूह के सदस्यों की हत्या '' और ' जानबूझकर आंशिक या सम्पूर्ण हिस्सों में जिंदगियों को प्रभावित करने का प्रयास किया गया।" उन्होंने कहा कि "अदालत की राय है कि म्यांमार में रोहिंग्या अत्यंत असुरक्षित हैं।" अदालत ने म्यांमार क

मुकम्मल ख़्वाब, अधूरी जिंदगी

सुनयना अभी यही कोई 45 बसंत देख चुकी है. जिम्मेदारियों के चलते अब तक वह अपना घर बसा नहीं पाई. पिता के असमय गुजर जाने के बाद घर की इकलौती सन्तान होने के कारण कैंसर से जूझ रही माँ की वह एकमात्र सहारा थी. सुनयना ने 20 साल की उम्र से अपने पिता के छोड़े गए कुछ असबाब के सहारे घर की पूरी जिम्मेदारी उठा ली. माँ के इलाज और खुद को स्थापित करने की चाह के बीच कभी उसके हृदय में प्रेम की कोंपलें फूट नहीं पाई. पिता के जाने के दस साल बाद माँ ने भी दुनिया से विदा ले ल िया. सुनयना के पास अब कुछ नहीं बचा था सिवाय अपने पिता के कारोबार को और बड़ा व बुलंदियों पर ले जाने के. सुनयना ने ठान लिया था कि वह खुद को साबित करेगी. उसकी इसी जिद ने कारोबार को ऊँचाइयाँ तो दीं लेकिन उसका यौवन कब ढल गया उसे खुद इसकी भनक तक नहीं लगी.. आज ऑफिस में बैठी वह अपने 25 साल के सफ़र के बारे सोच रही थी कि उसकी पीए नीलिमा ने दरवाजे पर दस्तक दी. सुनयना ने थोड़ी संयत होते हुए उसे अंदर आने को कहा. नीलिमा ने मुस्कुराते हुए टेबल पर एक लिफाफा रख दिया. सुनयना ने सवाल भरी नज़रों से उसकी तरफ देखा तो नीलिमा ने कहा - मैम मुझे एक हफ्ते

हरी बत्ती का लॉक-डाउन

"लगभग 1 हफ्ते और 23 घंटे बीत चुके हैं. चिड़चिड़ सी हो रही है. दिल यह सोच-सोच कर बैठा जा रहा है कि आखिर क्या हुआ होगा उसके साथ! वह ठीक तो होगी ना? उसके घर में कहीं कुछ... उफ्फ, नहीं, नहीं! अच्छा-अच्छा सोच यार, सब ठीक होगा, हाँ! यक़ीनन, सब ठीक है. लेकिन वह इतने दिनों से दिखी क्यों नहीं? इधर कोई परीक्षा भी नहीं है कि पढ़ाई-शढ़ाई कर रही हो. तो फिर इतने दिनों से ऑनलाइन क्यों नहीं आई? काश! कहीं से कोई कॉन्टैक्ट नंबर या ईमेल या उसके जान-पहचान का कोई मिल जाता तो मै  उसकी हाल खबर ले सकता. ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि वह इतने दिनों तक ऑफ लाइन रही हो. कहीं मेरी वजह से तो नहीं! क्या जरूरत थी मुझे यार, उसे ऐसे डायरेक्ट प्रपोज करने की! थोड़ा सा भी पेशेंश नहीं है मुझमे कि उसका यकीन जीतने तक का इंतजार करता.." प्रारब्ध मन में इतनी सारी उथल-पुथल लिए लगातार फ़ेसबुक को रिफ्रेश किए जा रहा था. इस उम्मीद में कि शायद अब सृष्टि ऑनलाइन दिखे और उसका हरी बत्ती का लॉक डाउन समाप्त हो. प्रारब्ध और सृष्टि पिछले दो-ढाई साल से फ़ेसबुक फ्रेंड हैं. कभी कभार दोनों के बीच इनबॉक्स में हल्की फुल्की बात हो जाया

प्रेम ईपत्र

'मेरे एक ख़त में लिपटी रात पड़ी हैं वो रात बुझा दो, मेरा वो सामान लौटा दो..' यह गाना सुनते हुए अचानक याद आया वह ख़त जो बरसों पहले उसकी ईमेल पर आया था. तारीख और साल याद नहीं, फिर भी खोजे जा रही थी.. इस डर से कि कहीं डिलीट न कर दिया हो.. एक पेज, दो पेज करके पलटती जा रही है .. कि अचानक अप्रैल 2013 में आए एक मेल पर नज़र टिक गई.. दो तारीख़ों के अन्तराल में तीन मेल एक नाम से आए थे.. खुशी के मारे उछल ही पड़ी. खुशी हो भी क्यों ना! आखिर वह पहला प्रेम पत्र था जिसे बड़े जतन और प्यार से लिखा गया होगा. एक साँस में सारे ख़त पढ़ गई. एक अजीब सा सुकून महसूस हो रहा है, जैसे जहन्नुम की आग में एक बूंद अमृत मिल गया हो, जैसे घुप्प अंधेरे में तारों की बरसात हो गई हो.. जैसे सूखी जमीन ने मोर की आवाज़ सुन ली हो और उसे सावन के आने की आहट लग गई हो.. एक अलग ही एहसास हो रहा था.. सेजल को यह ख़त उसके ब्रेक अप के दो महीने बाद अंकित ने लिखा था.. अंकित ने उस प्रेम पत्र में जैसे दिल निकाल कर रख दिया था.. ब्रेक अप के बाद सेजल अंदर से टूट गई थी. घुटन में जीना और बात-बात पर झल्ला जाना उसकी आदत में

अमेरिका व ईरान के तनाव के बीच, क्या हो सकती है भारत की भूमिका?

विश्व में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत पश्चिम एशिया खासकर ' ईरान व इराक ' देशों में युद्ध जैसी हलचल के चलते वैश्विक हितों में टकराव की स्थिति देखी जा रही है। चूँकि पश्चिम एशिया के 10 तेल प्रधान देशों में विश्व का 3.4 प्रतिशत ऊर्जायुक्त भू सतह पाई जाती है लेकिन बीपी के 2012 के ' विश्व ऊर्जा की सांख्यिकीय समीक्षा ' के अनुसार पूरी दुनिया का 48 प्रतिशत तेल रिज़र्व और 38 प्रतिशत प्राकृतिक गैस भंडार अब तक इन्हीं दसों देशों में पाए गए हैं। जाहिर सी बात है कि जब भी पश्चिमी एशिया में हितों का टकराव होगा तब-तब वैश्विक भूराजनीतिक और आर्थिक स्थिति को स्वाभाविक रूप से प्रभावित होगी। इससे भारत भी अछूता नहीं है , इसलिए जैसे ही संयुक्त अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के शीर्ष जनरल क़ासिम सुलेमानी को मारने का फैसला किया वैसे ही भारत के हाथ पांव फूल गए। गौरतलब है कि ईरान भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से एक है। भारतीय उपमहाद्वीप और फारस की खाड़ी में मजबूत वाणिज्यिक , ऊर्जा , सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के संबंध हैं। आइये जानें , कैसा रहा है भारत-ईरान का सम्बन्ध