'शिक्षा के साथ ऐसी बेरुखी! ऐ साहेब ये ठीक नहीं....'
जुलाई का महीना शुरू होते ही समाज में एक नए तरह का माहौल देखा जाता है. कन्धों पर सजे स्कूल बैग लिए नौनिहालों से लेकर कॉलेज/यूनिवर्सिटी जाता देश का नया वर्तमान और भविष्य एक नई ही फ़िज़ा बांध रहा होता है. कॉलेज/यूनिवर्सिटी में अपने नए भविष्य का सपना संजोये जब युवक-युवतियां अपने आज से ही उसे हकीकत में उतारने की कोशिशों में लग जाते है तो यह किसी भी देश के लिए शुभ का संकेत ही होता है. ऐसे में जब इसी आज के भविष्य पर किसी खास विचारधारा को थोपने और न मानने पर उन्हें जेल भेजा जाने लगे तो यक़ीनन यह देश की प्रगति और भविष्य के साथ खिलवाड़ किये जाने जैसा है. दुर्भाग्य यह है कि आज छात्र-छात्राओं की सोच-समझ को कुछ इस तरह से घेरने का प्रयास किया जा रहा है जिससे उनमे स्व विवेक के पैदा होने और उसका विकास होने के सभी रास्ते बंद किये जा सके. वर्ष 2014 से पहले शिक्षा पर राजनीति का इतना ज़्यादा प्रभावीकरण नहीं था जितना कि उसके बाद के दौर में देखा गया है. हैदराबाद यूनिवर्सिटी से शुरू हुआ सरकारी व प्रशासनिक अभियान जेएनयू से होता हुआ दिल्ली यूनिवर्सिटी, जाधव यूनिवर्सिटी, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ विश