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वही ढाक के तीन पात

एक वक्त से भारत में समान लैंगिक अधिकार दिया जाने कि कवायद चल रही है। समान जीवनयापन का अधिकार , समान शिक्षा का अधिकार , समान अवसरों का अधिकार , समांन उत्तराधिकार का अधिकार सहित न जाने कितने ऐसे समान अधिकार हैं जिन्हें लिपिबद्ध किया जाना आसान नहीं हैं। महिलाओं को पुरुषों के समान हक दिलाने की जो गतिविधियाँ चलाई जा रही है , उनमें एक और कवायद जुड़ गयी है "समान अभिभावकत्व के अधिकार की "। इस कानून के तहत जहाँ पहले गोद लिए गए बच्चे पर पहला हक सिर्फ पिता का होता था , वहीँ अब ये अधिकार समान रूप से माँ को भी प्राप्त होगा । ये ईसाईयों , यहूदियों , पारसियों , और मुसलमानों पर लागू होने वाले गार्जियंस एंड वार्ड एक्ट १८९० का संशोधित रूप होगा । संसदीय समिति ( विधि और न्याय ) इस कानून से सम्बंधित सुधार विधेयक का अध्ययन कर रही है। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में बेटी को अपने पिता की संपत्ति में बराबर का हक प्राप्त है। फिर भी आश्चर्य है की कानूनन अधिकार होने के बावजूद aaj भी उसे पराया धन कहा जाता है। जीवन भर पिता के घर से भेंट लेते रहने के बदले में उसे पैतृक संपत्ति में बराबर का हक न

मेघ और वसुधा का संगम

मेघ घिर के आते हैं अपने दोस्तों के संग अपनी वसुधा से फाग खेलने को , नभ से जल गिराते हैं होरी में गोरी को रंग देने को । ठिठोली कर गरजते हैं न मानों तो चमकते हैं , हैं आतुर अपनी सजनी को रंग में भिगोने को । । वसुधा का भी तो क्या कहना , मचलती है देख कर सजना , है भर लेना चाहती वो सारे पलों को अपने आँचल में एक सपना संजोने को । चहकने लगी देखकर होली कि रंगत , प्रीत के रंग में रंग जाने कि है हसरत , दिल ख़ुशी से झूम उठा है पूरा जगत तैयार इनमें खोने को । वसुधा कि ख़ुशी का है नहीं कोई सानी , मेघ की सुन्दर छटा ही है काफी धरती को लुभाने को । नभ में बजने लगी शहनाई देखो मेघ की बारात आई , सभी के होंठों पर है वसुधा की ख़ुशी छाई , मेघ वसुधा का है दिन आज एकाकार होने को । हैं आतुर अपनी सजनी को रंग में भिगोने को । ।