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सोशल मीडिया पर 'सरकार का अंकुश' क्या रोक पाएगा अभिव्यक्ति की आज़ादी को?

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आज कल सोशल मीडिया पर सरकारी नियंत्रण के प्रस्ताव के बारे में पक्ष और विपक्ष में खूब चर्चा हो रही है। इस प्रस्ताव के पक्ष में बोलने वालों का तर्क है कि इससे सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले द्वेषपूर्ण भाषण (हेट स्पीच), फेक न्यूज़, गैर राष्ट्रवादी गतिविधियों, सार्वजनिक धमकियों व लोगों का ब्रेन वाश करने की गतिविधियों पर अंकुश लगेगा।  वहीं इसका विरोध करने वालो का तर्क है कि सोशल मीडिया पर सरकारी नियंत्रण से नागरिकों का मौलिक अधिकार 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन' होगा साथ ही सरकारी नियंत्रण से गोपनीयता सुरक्षित नहीं रहेगी।  तो सबसे पहली बात कि सोशल मीडिया पर 'सरकार नियंत्रण' नहीं लगा रही। बल्कि का इस पर 'विधि का नियंत्रण' रहेगा। इसलिए 'सरकारी नियंत्रण' टर्म का इस्तेमाल कर गुमराह करने का प्रयास बंद होना चाहिए। दूसरे पिछले काफी समय में हम सभी ने देखा है कि सोशल मीडिया पर बने तमाम फर्जी अकाउंट, पेज व समूहों के माध्यम से पोस्ट की जाने वाली ख़बरें इतनी अस्पष्ट होती हैं कि यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि कौन सही हैं और कौन फर्जी हैं। सोशल मीडिया पर वायर

स्टोर रूम में पड़े-कराहते 'ख्वाब' की दास्ताँ

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बचपन में मोबाइल पर आने वाली शायरियों को नोटबुक पर दर्ज करने वाली रूपा अपने किशोरावस्था की ड्योढ़ी पर खड़ी ही हुई थी कि एक रोज कॉलेज की एक वर्कशॉप पर उसकी मुलाकात विजय से हुई। एक दूसरे कॉलेज से वर्कशॉप में हिस्सा लेने आया विजय, रूपा का पहला क्रश बन गया। रूपा पर नोटबुक में दर्ज शायरियों का नशा तारी था, ऐसे में विजय में रूपा को इश्क़ का खुदा नज़र आया। लेकिन संकोचवश वह विजय से बात तक न कर सकी। वर्कशॉप को लगभग तीन महीने गुजर चुके हैं। रूपा की नज़र पर विजय का चेहरा और उसकी सरलता मानों ठहर सी गई है। एक दिन उसके मोबाइल की घंटी बजी, रूपा ने रिसीव किया, उस तरफ से आवाज़ आई 'हेलो रूपा! मैं विजय'।  उफ़ यह क्या! रूपा की जुबान चिपकी रह गई, गले से आवाज ही नहीं निकल रही। उधर से फिर आवाज आई 'रूपा मैं विजय, पहचाना मुझे? हम वर्कशॉप में मिले थे?' रूपा अपने आपे में आते हुए बोली- 'हाँ विजय, कहो कैसे हो? मेरा नंबर कहाँ से मिला?' विजय ने जवाब दिया- कल आपके अतुल सर मिले थे, उन्हीं से मिला। रूपा, क्या हम मिल सकते हैं?' रूपा ने जवाब में 'हाँ' कह दिया। समय और जगह तय हुई। पहली मु

सरकार और सार्वजनिक हितों पर स्वाहा होते 'लावारिस' जंगल

मुंबई के समीप गोरेगांव स्थित आरे कॉलोनी से जुड़ा 3166 एकड़ में फैला जंगल और उसके लगभग 2,000 से अधिक वृक्ष शुक्रवार रात्रि और शनिवार दिनभर में सरकार व सार्वजनिक हितों पर स्वाहा हो गए। पिछले वर्ष ग्लोबल अर्थ चैंपियन के ख़िताब से सम्मानित होने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक पार्टी बीजेपी के तीनों स्तर की सरकारों के सरमाये में  2,646 वृक्ष काटने के लिए जारी सरकारी आदेश की आड़ में 2,000 से अधिक वृक्ष जमींदोज़ कर दिए गए। पर्यावरण सुरक्षा के लिए सिंगल यूज़्ड प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाने व लाखों शौचालयों का निर्माण करने का दावा कर रही केंद्र व राज्य सरकार ने मुंबई को मेट्रो शहर बनाने की धुन में वृक्षों के के 86 प्रजातियुक्त आरे जंगल के 2,646 वृक्षों को लावारिस कटने के लिए छोड़ दिया।  छोटा कश्मीर और नैनीताल कहे जाने वाले आरे के जंगलों की सुरक्षा के लिए जून 2015 में, वनशक्ति और आरे कंजर्वेशन ग्रुप आगे आये थे। दोनों ने मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (MMRC) के खिलाफ पुणे में NGT की वेस्टर्न पीठ में एक याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि आरे दुग्ध कॉलोनी के आस पास फैले वन क्षेत्र को जंगल के

तुम तब कहाँ थे?

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5 साल, 3 महीना और तकरीबन एक हफ्ते पुरानी सत्ताधारी पार्टी के सिपाही, मोहनदास करमचंद गाँधी की महिमा का खंडन करने के फेर में अपने कथित देशभक्त नाथूराम गोडसे व विनायक दामोदर सावरकर का महिमामंडन करते रहते हैं। दिलचस्प बात यह रहती है कि अपने कथित देशभक्तों के लिए इनके पास कोई कहानी नहीं है इसलिए जिसका अपना गौरवपूर्ण इतिहास रहा है, उस पर ये कीचड़ उछालते रहते हैं। मसलन कभी महात्मा गाँधी को हिन्दू विरोधी बताते हैं तो कभी अय्याश कहने लगते हैं। कभी इनके पास यह भी कहने को होता है कि अगर महात्मा गाँधी चाहते तो वह भगत सिंह की फांसी रुकवा सकते थे।  कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी जिसने हमेशा पूंजीपतियों की जेबें भरी हैं, इन्हें शहीद भगत सिंह की वामपंथी विचारधारा और उनपर मार्क्स-लेनिन का प्रभाव नहीं दिखता क्योंकि वह भगत सिंह को बन्दूक में देखते हैं। भगत सिंह का इस्तेमाल गाँधी की गरिमा को मटियामेट करने के लिए करते हैं। इस तरह बंदूकधारी भगत सिंह को हत्यारे गोडसे के समकक्ष खड़ा करने की कोशिश करते हैं। लेकिन इतिहास बहुत कठोर होता है, वह किसी का पक्ष नहीं लेता इसलिए वह आरएसएस और विहिप जैसों की पोल खोल क