सोशल मीडिया पर 'सरकार का अंकुश' क्या रोक पाएगा अभिव्यक्ति की आज़ादी को?
आज कल सोशल मीडिया पर सरकारी नियंत्रण के प्रस्ताव के बारे में पक्ष और विपक्ष में खूब चर्चा हो रही है। इस प्रस्ताव के पक्ष में बोलने वालों का तर्क है कि इससे सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले द्वेषपूर्ण भाषण (हेट स्पीच), फेक न्यूज़, गैर राष्ट्रवादी गतिविधियों, सार्वजनिक धमकियों व लोगों का ब्रेन वाश करने की गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। वहीं इसका विरोध करने वालो का तर्क है कि सोशल मीडिया पर सरकारी नियंत्रण से नागरिकों का मौलिक अधिकार 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन' होगा साथ ही सरकारी नियंत्रण से गोपनीयता सुरक्षित नहीं रहेगी। तो सबसे पहली बात कि सोशल मीडिया पर 'सरकार नियंत्रण' नहीं लगा रही। बल्कि का इस पर 'विधि का नियंत्रण' रहेगा। इसलिए 'सरकारी नियंत्रण' टर्म का इस्तेमाल कर गुमराह करने का प्रयास बंद होना चाहिए। दूसरे पिछले काफी समय में हम सभी ने देखा है कि सोशल मीडिया पर बने तमाम फर्जी अकाउंट, पेज व समूहों के माध्यम से पोस्ट की जाने वाली ख़बरें इतनी अस्पष्ट होती हैं कि यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि कौन सही हैं और कौन फर्जी हैं। सोशल मीडिया पर वायर