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पथ कठिन है, फिर भी तुझे चलना होगा लथपथ होकर भी

ओ स्त्रियों ! चलो कोर्ट ने तो तुम्हे रिहा कर दिया, तुम अब कानूनन किसी की संपत्ति नहीं हो. संविधान में तो इस बात पर मौलिक अधिकारों के तहत कब का ठप्पा लग चुका था, बस अब कानूनी मंजूरी भी मिल गई. धारा 377 हटी, फिर 158 साल पुरानी धारा 497 समाप्त कर तुम्हारे जिन्दा होने पर मुहर लगी. फिर सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 आयुवर्ग की बच्चियों व महिलाओं को प्रवेश लेने की अनुमति दे दी. इसका मतलब ये कि जिस खून से तुम जीवन सींचती और समेटती हो, वह कोई पाप, कोई कलंक या कोई रोग नहीं है. मासिक धर्म अब किसी भी धर्म से परे नहीं है. तुम बिना तनाव के सेनेटरी पैड लेकर मंदिर या किसी भी पवित्र स्थल पर बेबाक होकर जा सकती हो. अपने घरों में अपनी श्रद्धा को किसी कमरे के कोने में समेटने के बजाय पवित्र स्थान पर खुलकर जश्न मना सकती हो.  किसी पुरुष से महज बात कर लेने या उससे निकटता रखने से अब तुम्हारे चरित्र का आकलन कानूनी रूप से करना अवैध माना जाएगा. शादी के बाद भी तुम अपने अस्तित्व को अपने लिए संजो सकोगी. तुम्हारे अस्तित्व पर किसी की सरपरस्ती नहीं रहेगी. बाहर काम करने वाली महिलाओं को उनके घर छोड़न

राजभाषा, राष्ट्रभाषा, साहित्य या बोलचाल, किसकी भाषा है हिन्दी?

संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में मान्यता दी गई है. उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में हिन्दी को प्रथम राजकीय भाषा के रूप में मान्यता मिली है जबकि असल में व्यावहारिक रूप में ऐसा होता नहीं है. संविधान में हिन्दी के अतिरिक्त भाषा सूची में 21 अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ को मान्यता दी गई. जैसा कि कहा जा चुका है कि उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों जैसे, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में हिन्दी को प्राथमिक भाषा का दर्जा दिया गया है.  संविधान और देश के निर्माताओं का विचार था कि देश में एक ऐसी भाषा प्रचलन में हो जिसके माध्यम से बहुभाषाई भारत में संवाद स्थापित करने में कोई समस्या न आये. बहुमत के हिसाब से देखा जाए तो उस समय हिन्दी ही ऐसी भाषा नज़र आई जिसका प्रयोग कई राज्यों में किया जाता रहा है. दक्षिण भारत में हिन्दी की अपेक्षा उनकी अपनी क्षेत्रीय भाषा को राजकीय भाषा के रूप में मान्यता देने की होड़ मची रही. जिससे हिन्दी उस राज्य की तीसरी भाषा बनकर रह गई

फैसला ' अपने जैसा बने रहने का'

   अमूमन मैं मेकअप नहीं करती. घर से बाहर निकलते समय एक फेयरनेस क्रीम और काजल ही मेरा पूरा मेकअप होता है. आज कई महीनों पहले ली गई एक लिपस्टिक लगाते हुए बरक्स एक सवाल जेहन में कौंध आया.. मैं मेकअप नहीं करती हूँ तो फिर ये लिपस्टिक लगाते हुए मुझे अच्छा क्यों लग रहा है? ठीक उसी समय अचानक सेक्शन 377 का ख्याल हो आया. काजल, पाउडर, लिपस्टिक, फाउंडेशन, आई लाइनर, ब्लशर सहित मेकअप में इस्तेमाल होने वाली चीजों पर केवल और केवल स्त्रियों का एकाधिकार क्यों? पुरुषों के वस्त्र, उनकी हेयर स्टाइल, उनके एकाधिकारिक कार्यक्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश जब समानता के परिप्रेक्ष्य से औचित्यपूर्ण है तो महिलाओं के मेकअप या फिर यूँ कहें कि सजने-संवरने और खूबसूरत दिखने की चाह वाले अब तक के एकाधिकार पर पुरुषों का प्रवेश क्यों वर्जित रखा गया था?   मनचाहे बाहरी या आतंरिक सौंदर्य को परिष्कृत करने का हक़ सभी लिंगों को बराबर मिलना चाहिए फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष.. या फिर क्वीर (LGBT) ... आज जबकि हर तरह की पाबन्दी या ड्योढ़ी को पार कर एक नई दुनिया में प्रवेश किया जा रहा है तो फिर पुरुषों के साथ ऐसी ज्यादती क्यों!

जहाँ जनता से जुड़े सवाल दम तोड़ रहे हैं, वहीं सरकार का जवाब न देने का तरीका वाकई लाजवाब है!

रूपया गिर रहा है, डीज़ल -पेट्रोल और गैस के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. शिक्षा में NPA की स्थिति ऐसी है कि ऋण लेकर शिक्षा पूरी कर चुके इंजीनियर-डॉक्टर बेरोजगार हैं. पीएचडी होल्डर चतुर्थ समूह की नौकरियों के लिए आवेदन करने पर मजबूर हैं. इलाहाबाद, दिल्ली, पुणे, बेंगलोर जैसे एजुकेशन हबों पर खेप की खेप बेरोजगारी देश की जीडीपी के आंकड़े लगाते हुए अपने बाल सफ़ेद कर रही है. धर्म के संक्रमण की गति इतनी तेज है कि राह चलते लोग इसके शिकार हो रहे हैं. महिला सुरक्षा का हाल यह है कि नवजात बच्चियों से लेकर मृत्यु के द्वार पर खड़ी वृद्धाएं तक अस्मत लुट जाने की दहशत में हैं. गंवार और अंधभक्त कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखा रहे हैं जबकि सरकार से सवाल करने वालों को देशद्रोह के आरोप में जेल का रास्ता दिखाया जा रहा है. दुग्ध उत्पादन दुनिया में नंबर वन भारत भुखमरी की सूची में 119 देशों में 100 वें नंबर पर है. यह हालात तब है जबकि भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. जनसँख्या में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. सबसे ज़्यादा युवा भारत में रहते हैं. खुश रहने वाले 156 देशों की सूची में भारत 133 वें नंबर पर है. प