पथ कठिन है, फिर भी तुझे चलना होगा लथपथ होकर भी
ओ स्त्रियों ! चलो कोर्ट ने तो तुम्हे रिहा कर दिया, तुम अब कानूनन किसी की संपत्ति नहीं हो. संविधान में तो इस बात पर मौलिक अधिकारों के तहत कब का ठप्पा लग चुका था, बस अब कानूनी मंजूरी भी मिल गई. धारा 377 हटी, फिर 158 साल पुरानी धारा 497 समाप्त कर तुम्हारे जिन्दा होने पर मुहर लगी. फिर सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 आयुवर्ग की बच्चियों व महिलाओं को प्रवेश लेने की अनुमति दे दी. इसका मतलब ये कि जिस खून से तुम जीवन सींचती और समेटती हो, वह कोई पाप, कोई कलंक या कोई रोग नहीं है. मासिक धर्म अब किसी भी धर्म से परे नहीं है. तुम बिना तनाव के सेनेटरी पैड लेकर मंदिर या किसी भी पवित्र स्थल पर बेबाक होकर जा सकती हो. अपने घरों में अपनी श्रद्धा को किसी कमरे के कोने में समेटने के बजाय पवित्र स्थान पर खुलकर जश्न मना सकती हो. किसी पुरुष से महज बात कर लेने या उससे निकटता रखने से अब तुम्हारे चरित्र का आकलन कानूनी रूप से करना अवैध माना जाएगा. शादी के बाद भी तुम अपने अस्तित्व को अपने लिए संजो सकोगी. तुम्हारे अस्तित्व पर किसी की सरपरस्ती नहीं रहेगी. बाहर काम करने वाली महिलाओं को उनके घर छोड़न