क्या चुना जाय, सम्मान या संस्कार?
कभी-कभी जिंदगी में ऐसी जटिल परिस्थिति सामने आ जाती है कि उससे निपटने का रास्ता तो होता है लेकिन पैदाइशी संस्कार ऐसा करने से रोकने लगते हैं. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही घटा है जिसे इस सोशल मीडिया पर साझा करना चाहती हूँ. इसलिए नहीं कि मेरा विक्टिम कार्ड खेलने जैसा कोई इरादा है बल्कि इसलिए क्योंकि ऐसा करना मुझे जरुरी लगा. जहाँ भी लोकतंत्र है वहां अपनी बात रखने, अपने विचार साझा करने का मौलिक अधिकार होता है और जहाँ लोकतंत्र नहीं है वहां भी अभिव्यक्ति का अधिकार एक अहम् मानव अधिकार माना जाता है. जैसा कि वोल्टेयर ने कहा भी है कि 'We have a natural right to make use of our pens as of our tongue, at our peril, risk and hazard'. (हम सभी को अपने खतरे, अपने जोखिम और अपनी हिम्मत के बलबूते अपनी कलम और ज़ुबान का इस्तेमाल करने का प्राकृतिक अधिकार है.) कल मेरी एक फेसबुक पोस्ट पर कभी मेरे गुरु रहे व्यक्ति को बहुत ऐतराज हुआ. वो उस पोस्ट पर आई एक अन्य मित्र की टिप्पणी में घुस आये और मोदी को मेंटर बताने लगे. चूँकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मेरे लिए बहुत मायने रखती है इसलिए उनके विचार पर मुझे कोई रो