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क्या चुना जाय, सम्मान या संस्कार?

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कभी-कभी जिंदगी में ऐसी जटिल परिस्थिति सामने आ जाती है कि उससे निपटने का रास्ता तो होता है लेकिन पैदाइशी संस्कार ऐसा करने से रोकने लगते हैं. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही घटा है जिसे इस सोशल मीडिया पर साझा करना चाहती हूँ. इसलिए नहीं कि मेरा विक्टिम कार्ड खेलने जैसा कोई इरादा है बल्कि इसलिए क्योंकि ऐसा करना मुझे जरुरी लगा. जहाँ भी लोकतंत्र है वहां अपनी बात रखने, अपने विचार साझा करने का मौलिक  अधिकार होता है और जहाँ लोकतंत्र नहीं है वहां भी अभिव्यक्ति का अधिकार एक अहम् मानव अधिकार माना जाता है. जैसा कि वोल्टेयर ने कहा भी है कि 'We have a natural right to make use of our pens as of our tongue, at our peril, risk and hazard'. (हम सभी को अपने खतरे, अपने जोखिम और अपनी हिम्मत के बलबूते अपनी कलम और ज़ुबान का इस्तेमाल करने का प्राकृतिक अधिकार है.)  कल मेरी एक फेसबुक पोस्ट पर कभी मेरे गुरु रहे व्यक्ति को बहुत ऐतराज हुआ. वो उस पोस्ट पर आई एक अन्य मित्र की टिप्पणी में घुस आये और मोदी को मेंटर बताने लगे. चूँकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मेरे लिए बहुत मायने रखती है इसलिए उनके विचार पर मुझे कोई रो

फरवरी यानी माह ए मोहब्बत..

फरवरी यानी माह ए मोहब्बत..दुनिया भर के प्रेमियों को इस महीने का इंतज़ार बेसब्री से रहता है. दो प्रेमी अपनी प्रेम की कोपलों के खिलने का ख्वाब सजाए फरवरी के आने का इंतजार करते हैं. भारत में भी इस ख्वाब को आंखों में सजाने वालों की कोई कमी नहीं है. भले ही उनपर लट्ठ बरसे या ताने उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. मोहब्बत और मोहब्बत के दुश्मनों का वजूद हमेशा से एक साथ चलता आया है. संगीनों के साये में मोहब्बत के जवां होने के किस्सों को कौन नहीं जानता होगा! यूँ तो प्रेम को कई रूपों में बांटा गया है लेकिन प्रेम ने लोगों को  हमेशा से जोड़ने का काम किया है. भारत भले ही खुद के आधुनिक और विकसित होने की गफलत में जी रहा हो लेकिन हकीकत इससे परे है. मेट्रो पॉलिटन शहरों को छोड़ दें (हालांकि अपवाद यहां भी मिल ही जाते हैं) तो दो लोगों के प्रेम को किसी बड़े गुनाह से कमतर नहीं आंका जाता है. हैदराबाद के प्रणय और अमृता की प्रेम कहानी का दुखद अंत भुलाया नहीं जा सकता है. भारत में ऑनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं से किसे इंकार होगा! जाति-धर्म और अहम मे बंटे देश में आज़ाद मोहब्बत का ख्वाब पालना चाँद पर उड़कर जान