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सोशल मीडिया से शुरू हुए #MeToo के उद्देश्य को ही क्यों विकृत कर रहा है यह जरिया?

    घटनाएं जब इक्की-दुक्की हो रही हों, तो लोगों को उनपर बहुत जल्दी भरोसा हो जाता है. लेकिन जब यही घटनाएं एक के बाद एक सिलसिलेवार खुलने लगे तो वह रिवाज और आदत बन जाती है. भारत में #MeToo कैंपेन का हश्र कुछ ऐसा ही हो रहा है. महिलाओं ने अपनी जिंदगी के उन स्याह पहलुओं को खोलना शुरू किया जिसमे उनके साथ उनके किसी करीबी या किसी अजनबी पुरुष ने यौन शोषण किया था. धीरे-धीरे जब महिलाऐं इस कैंपेन से जुड़ने लगीं और अपना अनुभव साझा करने लगीं तो शुरुआत में सभी ने इस कैंपेन का समर्थन किया. कुछ महिलाओं ने अपने साथ हुई इस दुर्घटना में सिर्फ घटना के बारे में बताया जबकि आरोपियों के नाम गुप्त रखे. लेकिन जब #MeToo को जबरदस्त समर्थन मिला तो आरोपियों के नाम भी उजागर होने लगे. इक्की-दुक्की घटना से शुरू हुआ यह कैंपेन अब तक लाखों लोगों को जोड़ चुका है.  हाल ही में कई बड़ी शख्सियतों का नाम आने के बाद #MeToo के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं. कुछ लोग #MeToo को #SheToo कह रहे हैं तो कुछ लोगों का कहना है कि #MeToo जेंडर बायस्ड है, इससे उन पुरुषों को भी जुड़ना चाहिए जिन्हे कभी भी महिलाओं ने परेशान किया है. कुल मिलाकर #

पथ कठिन है, फिर भी तुझे चलना होगा लथपथ होकर भी

ओ स्त्रियों ! चलो कोर्ट ने तो तुम्हे रिहा कर दिया, तुम अब कानूनन किसी की संपत्ति नहीं हो. संविधान में तो इस बात पर मौलिक अधिकारों के तहत कब का ठप्पा लग चुका था, बस अब कानूनी मंजूरी भी मिल गई. धारा 377 हटी, फिर 158 साल पुरानी धारा 497 समाप्त कर तुम्हारे जिन्दा होने पर मुहर लगी. फिर सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 आयुवर्ग की बच्चियों व महिलाओं को प्रवेश लेने की अनुमति दे दी. इसका मतलब ये कि जिस खून से तुम जीवन सींचती और समेटती हो, वह कोई पाप, कोई कलंक या कोई रोग नहीं है. मासिक धर्म अब किसी भी धर्म से परे नहीं है. तुम बिना तनाव के सेनेटरी पैड लेकर मंदिर या किसी भी पवित्र स्थल पर बेबाक होकर जा सकती हो. अपने घरों में अपनी श्रद्धा को किसी कमरे के कोने में समेटने के बजाय पवित्र स्थान पर खुलकर जश्न मना सकती हो.  किसी पुरुष से महज बात कर लेने या उससे निकटता रखने से अब तुम्हारे चरित्र का आकलन कानूनी रूप से करना अवैध माना जाएगा. शादी के बाद भी तुम अपने अस्तित्व को अपने लिए संजो सकोगी. तुम्हारे अस्तित्व पर किसी की सरपरस्ती नहीं रहेगी. बाहर काम करने वाली महिलाओं को उनके घर छोड़न

राजभाषा, राष्ट्रभाषा, साहित्य या बोलचाल, किसकी भाषा है हिन्दी?

संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में मान्यता दी गई है. उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में हिन्दी को प्रथम राजकीय भाषा के रूप में मान्यता मिली है जबकि असल में व्यावहारिक रूप में ऐसा होता नहीं है. संविधान में हिन्दी के अतिरिक्त भाषा सूची में 21 अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ को मान्यता दी गई. जैसा कि कहा जा चुका है कि उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों जैसे, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में हिन्दी को प्राथमिक भाषा का दर्जा दिया गया है.  संविधान और देश के निर्माताओं का विचार था कि देश में एक ऐसी भाषा प्रचलन में हो जिसके माध्यम से बहुभाषाई भारत में संवाद स्थापित करने में कोई समस्या न आये. बहुमत के हिसाब से देखा जाए तो उस समय हिन्दी ही ऐसी भाषा नज़र आई जिसका प्रयोग कई राज्यों में किया जाता रहा है. दक्षिण भारत में हिन्दी की अपेक्षा उनकी अपनी क्षेत्रीय भाषा को राजकीय भाषा के रूप में मान्यता देने की होड़ मची रही. जिससे हिन्दी उस राज्य की तीसरी भाषा बनकर रह गई

फैसला ' अपने जैसा बने रहने का'

   अमूमन मैं मेकअप नहीं करती. घर से बाहर निकलते समय एक फेयरनेस क्रीम और काजल ही मेरा पूरा मेकअप होता है. आज कई महीनों पहले ली गई एक लिपस्टिक लगाते हुए बरक्स एक सवाल जेहन में कौंध आया.. मैं मेकअप नहीं करती हूँ तो फिर ये लिपस्टिक लगाते हुए मुझे अच्छा क्यों लग रहा है? ठीक उसी समय अचानक सेक्शन 377 का ख्याल हो आया. काजल, पाउडर, लिपस्टिक, फाउंडेशन, आई लाइनर, ब्लशर सहित मेकअप में इस्तेमाल होने वाली चीजों पर केवल और केवल स्त्रियों का एकाधिकार क्यों? पुरुषों के वस्त्र, उनकी हेयर स्टाइल, उनके एकाधिकारिक कार्यक्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश जब समानता के परिप्रेक्ष्य से औचित्यपूर्ण है तो महिलाओं के मेकअप या फिर यूँ कहें कि सजने-संवरने और खूबसूरत दिखने की चाह वाले अब तक के एकाधिकार पर पुरुषों का प्रवेश क्यों वर्जित रखा गया था?   मनचाहे बाहरी या आतंरिक सौंदर्य को परिष्कृत करने का हक़ सभी लिंगों को बराबर मिलना चाहिए फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष.. या फिर क्वीर (LGBT) ... आज जबकि हर तरह की पाबन्दी या ड्योढ़ी को पार कर एक नई दुनिया में प्रवेश किया जा रहा है तो फिर पुरुषों के साथ ऐसी ज्यादती क्यों!

जहाँ जनता से जुड़े सवाल दम तोड़ रहे हैं, वहीं सरकार का जवाब न देने का तरीका वाकई लाजवाब है!

रूपया गिर रहा है, डीज़ल -पेट्रोल और गैस के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. शिक्षा में NPA की स्थिति ऐसी है कि ऋण लेकर शिक्षा पूरी कर चुके इंजीनियर-डॉक्टर बेरोजगार हैं. पीएचडी होल्डर चतुर्थ समूह की नौकरियों के लिए आवेदन करने पर मजबूर हैं. इलाहाबाद, दिल्ली, पुणे, बेंगलोर जैसे एजुकेशन हबों पर खेप की खेप बेरोजगारी देश की जीडीपी के आंकड़े लगाते हुए अपने बाल सफ़ेद कर रही है. धर्म के संक्रमण की गति इतनी तेज है कि राह चलते लोग इसके शिकार हो रहे हैं. महिला सुरक्षा का हाल यह है कि नवजात बच्चियों से लेकर मृत्यु के द्वार पर खड़ी वृद्धाएं तक अस्मत लुट जाने की दहशत में हैं. गंवार और अंधभक्त कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखा रहे हैं जबकि सरकार से सवाल करने वालों को देशद्रोह के आरोप में जेल का रास्ता दिखाया जा रहा है. दुग्ध उत्पादन दुनिया में नंबर वन भारत भुखमरी की सूची में 119 देशों में 100 वें नंबर पर है. यह हालात तब है जबकि भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. जनसँख्या में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. सबसे ज़्यादा युवा भारत में रहते हैं. खुश रहने वाले 156 देशों की सूची में भारत 133 वें नंबर पर है. प

'शिक्षा के साथ ऐसी बेरुखी! ऐ साहेब ये ठीक नहीं....'

जुलाई का महीना शुरू होते ही समाज में एक नए तरह का माहौल देखा जाता है. कन्धों पर सजे स्कूल बैग लिए नौनिहालों से लेकर कॉलेज/यूनिवर्सिटी जाता देश का नया वर्तमान और भविष्य एक नई ही फ़िज़ा बांध रहा होता है. कॉलेज/यूनिवर्सिटी में अपने नए भविष्य का सपना संजोये जब युवक-युवतियां अपने आज से ही उसे हकीकत में उतारने की कोशिशों में लग जाते है तो यह किसी भी देश के लिए शुभ का संकेत ही होता है. ऐसे में जब इसी आज के भविष्य पर किसी खास विचारधारा को थोपने और न मानने पर उन्हें जेल भेजा जाने लगे तो यक़ीनन यह देश की प्रगति और भविष्य के साथ खिलवाड़ किये जाने जैसा है. दुर्भाग्य यह है कि आज छात्र-छात्राओं की सोच-समझ को कुछ इस तरह से घेरने का प्रयास किया जा रहा है जिससे उनमे स्व विवेक के पैदा होने और उसका विकास होने के सभी रास्ते बंद किये जा सके. वर्ष 2014 से पहले शिक्षा पर राजनीति का इतना ज़्यादा प्रभावीकरण नहीं था जितना कि उसके बाद के दौर में देखा गया है. हैदराबाद यूनिवर्सिटी से शुरू हुआ सरकारी व प्रशासनिक अभियान जेएनयू से होता हुआ दिल्ली यूनिवर्सिटी, जाधव यूनिवर्सिटी, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ विश

मदनलाल सैनी के जरिये क्या वसुंधरा पर शिकंजा कस पाएंगे अमित शाह ?

शनिवार को जब मदनलाल सैनी को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया तब एक साथ कई राजनीतिक पेंचों को संतुलित करने की कोशिश की गई. 17 अप्रैल को जबसे अशोक परनामी को राज्य बीजेपी के अध्यक्ष पद से उठाकर बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति का सदस्य बनाया गया था तबसे राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष का पद रिक्त ही चला आ रहा था. बीच में जब गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाए जाने पर विचार किया गया तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उस पर वीटो कर दिया.  बाड़मेर में गैंगेस्टर चतुर सिंह के एनकाउंटर के बाद से गजेंद्र सिंह शेखावत और वसुंधरा के बीच की तल्खियां तब खुल कर सामने आई जब गजेंद्र ने मामले की सीबीआई जाँच की मांग कर दी. इस बात से यह तो साफ़ हो गया कि बीजेपी के रसूखदार नेता गजेंद्र और मुख्यमंत्री के बीच सब कुछ ठीक तो नहीं है. यहाँ पर सरकार के पुलिस तंत्र पर गजेंद्र का सवाल उठाना मुख्यमंत्री पर सवाल उठाने जैसा था जिसके बाद वसुंधरा और गजेंद्र में एक शीतयुद्ध जैसा माहौल देखा गया. 2016 में मोदी सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर राजस्थान में एक रैली हुई जिसमे गजेंद्र ने केंद्र सरकार की जमकर त

अस्मत पर भारी पड़ रही सियासत, मंदसौर बलात्कार पर बेटी को कैसे मिले इंसाफ ?

26 जून को मंदसौर में एक सात साल की बच्ची की अस्मत लूट ली गई. अभी वह इंदौर के एक अस्पताल में जिंदगी हुए मौत के बीच झूल रही है. शरीर पर बेदर्दी और दरिंदगी के निशान लिए वह मासूम अपने साथ हुए जघन्य अपराध पर न्याय मांग रही है. पुलिस के पास मामले का केस दर्ज है और दो आरोपी इरफ़ान और आसिफ जेल में हैं. सोशल मीडिया पर बलात्कार आरोपियों को मौत की सजा देने की मांग हो रही है. कानून ताक पर है और कानून निर्माता बलात्कार के मामलों पर जम कर सियासत कर रहे हैं. बीजेपी के मंदसौर सांसद सुधीर गुप्ता मंदसौर की उस बेटी के घर पहुंचे जिसके साथ यह जघन्य अपराध हुआ है. सियासत की दरिंदगी यहाँ भी जारी है, बीजेपी के इंदौर विधायक सुदर्शन गुप्ता पीड़िता के परिवार से चाहते हैं कि वे सांसद सुधीर गुप्ता का धन्यवाद करें क्योंकि वह उनसे मिलने आए. कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मामले की जाँच सीबीआई को सौंपने की मांग की है. सियासत में गन्दगी यहाँ से शुरू नहीं हुई है. यह अस्मत से खिलवाड़ और उस पर सियासत अक्सर होती रही है. निर्भया, कठुआ, गाज़ियाबाद, इंदौर, हरियाणा, लखनऊ और अब मंदसौर... सियासत अपनी धार चमकाने स

दायरों के साथ ही बढ़ी हैं हिंदी पत्रकारिता की चुनौतियाँ और जिम्मेदारी

हिंदी पत्रकारिता के लिए आज का दिन बेहद खास है. आज ही के दिन 192 साल पहले यानी 30 मई, 1826 को पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से प्रथम हिन्दी समाचार पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन आरंभ किया था. इससे पहले अंग्रेजी, बंगाली और फारसी भाषा में समाचार पत्र मौजूद थे लेकिन हिंदी के समाचार पत्रों का अभाव था. लोगों तक हिंदी अख़बार की पहुँच का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन पत्रकारिता जगत के इस एकमात्र हिंदी अख़बार का प्रकाशन पूँजी व पहुँच न होने के कारण उसी वर्ष 4 दिसंबर को बंद करना पड़ा था उसके बाद राजा राममोहन राय, द्वारका प्रसाद ठाकुर व नीलरतन हालदार द्वारा 1829 में दूसरा हिंदी अख़बार 'बंग दूत' के नाम से प्रकाशित किया गया. यह अख़बार हिंदी, बांग्ला और फारसी भाषा में छपता था. इसके बाद हिंदी पत्रकारिता को अपनी भाषा, स्थान और हिंदी माध्यम के पाठकों तक हिंदी अख़बार की सामान्य पहुँच न होने के कारण बहुत संघर्ष करना पड़ा. आज न केवल भारत में बल्कि विश्व के कई देशों में हिंदी अख़बार छपते हैं बल्कि उसका दायरा भी काफी बढ़ा है. हज़ारों-हज़ार हिंदी अख़बार आज लोगों की स

मई डे यानी मजदूर दिवस : कितना मौजूं मजदूर दिवस ..?

1 मई यानी मजदूर दिवस.. दुनिया भर में विकास की गति जिन दो ध्रुवों पर पर केंद्रित हैं वे हैं मालिक व कर्मचारी. मालिक वो जो किसी उद्यम में अपना दिमाग और धन लगते हैं और कर्मचारी वो जो मालिक के इस विचार को अमलीजामा पहनाते हैं. बदले में कर्मचारी को मालिक की तरफ से एक धनराशि दी जाती है. पढ़ने, देखने और सुनने में ये जितना सरल महसूस हो रहा है इसके उलट यह उतना ही जटिल है. मालिक यानी पूंजीपति अधिक लाभ के फेर में अपने कर्मचारी जिसे मजदूर भी कहा जाता है, से मनमाने तौर पर काम लेता है और बदले में अपर्याप्त यानी योग्यता व कार्य के से कहीं ज़्यादा कम राशि देता है. अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के पीछे यह उद्देश्य था कि कम से कम एक दिन तो मजदूरों की समस्याओं और उनकी महत्त्ता के बारे में दुनिया भर को अवगत करवाया जाए. लेकिन बढ़ती जरूरतों और आगे बढ़ने की होड़ के बीच मजदूर दिवस का यह उद्देश्य धीरे-धीरे फीका पड़ने लगा है. आज नव उदारवाद युग में जबकि विकास की पूरी प्रक्रिया कॉर्पोरेट ने अपने हाथों में ले लिया है,ऐसे दौर में कॉर्पोरेट में काम करने वाले कर्मचारियों की नैसर्गिक आवश्यकताओं को पूरा कर पाना मुश्किल ह

Nav yug: धिक्कार है! तेरे विकार पर

Nav yug: धिक्कार है! तेरे विकार पर : आठ महीने की दुधमुंही बच्ची का बलात्कार! सुनने में ही कितना भयानक है यह ! काश उस आठ महीने की बच्ची ने 6 मीटर की साड़ी लपेट रखी होती तो शाय...

धिक्कार है! तेरे विकार पर

आठ महीने की दुधमुंही बच्ची का बलात्कार! सुनने में ही कितना भयानक है यह ! काश उस आठ महीने की बच्ची ने 6 मीटर की साड़ी लपेट रखी होती तो शायद 28 साल का वह वहशी उसे अपनी बहन ही मान रहा होता! लेकिन 8 महीने की उस बच्ची को क्या जरा सा ख्याल नहीं आया कि किसी के भी सामने किसी भी उम्र में बिना साड़ी या सलवार कमीज के नहीं जाते ! वाह! रे सभ्य समाज ! धिक्कार है तेरी ऐसी वहशियत पर! जहाँ तू एक काल्पनिक किरदार के लिए दंगे करवा सकता है लेकिन असल में बेटियों को सिवाय सेक्स स्लेव के किसी और रूप  में नहीं देख सकता. माफ़ी चाहूंगी, 'सेक्स स्लेव' शब्द को स्पष्ट करना चाहूंगी, नहीं तो तुम्हारी मरी हुई संवेदनाए असंतुलित हो कर नंगा-नाच करना शुरू कर देंगी. 'सेक्स स्लेव' से मेरा मतलब ये है कि आज भी लड़कियों को 'योनि' से ज़्यादा कुछ नहीं समझा जाता है. भले ही लड़कियां चाँद-सूरज तक पहुँच जाएं या कि जेट विमान में उड़ान भर लें, जमीन पर तो वो केवल तुम्हारी दासी ही हैं. तुम्हारी सोच इससे आगे नहीं बढ़ेगी, बढ़ भी नहीं सकती क्योंकि तुम तो आज भी सीता-सावित्री को पूजते हो लेकिन यह कभी नहीं चाहते

तो क्या लालू के जेल जाते ही ढह जाएगा 2019 का विपक्ष?

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से न केवल केंद्र बल्कि बीजेपी शासित 19 राज्यों में विपक्ष कोमा अवस्था में है. देश की प्रमुख पार्टियों में से एक कांग्रेस निरंतर नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले सत्ता पक्ष के खिलाफ एक सशक्त विपक्ष खड़ा करने का प्रयास कर रही है. इस प्रयास में बिहार के सर्वमान्य नेता लालू प्रसाद यादव की भूमिका को सबसे अहम् माना जा रहा था. लेकिन चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू के जेल जाने के बाद विपक्ष की यह उम्मीद अब फिर से दम तोड़ती नज़र आ रही है. हालांकि बार-बार यह कहा जाता रहा है कि लालू के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव सम्हालेंगे. तेजस्वी को लालू की छाया के रूप में प्रदर्शित करने का प्रयास भी किया जाता रहा है. लेकिन इस बात से दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि तेजस्वी समेत लालू के पूरे परिवार पर भ्रष्टाचार का केस अदालत में विचाराधीन है. जिसपर फैसला कभी भी आ सकता है. केंद्र की बीजेपी सरकार लालू के अभेद्य किले में सेंध लगा चुकी है. कभी लालू के प्रिय मित्र रहे बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के खेमे में जा चुके हैं.