नई-नई परिभाषाएँ गढ़ता धर्म और उसमे से निकलती बदबूदार गंध
न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में सबसे ज़्यादा विवादित शब्द है ' धर्म ' . एक समय में कहा जाता था कि ' धर्म ' हर तरह के तर्क से परे है. यह भी माना जाता रहा कि ' इति धारयेति ' माने जिसे स्वेच्छा से धारण किया जाए वही ' धर्म ' है. अब जैसा कि होता रहा है ' जब किसी चीज या सोच में समय के अनुसार बदलाव न किया जाए वह सड़ने लगती है ', धर्म के साथ भी ऐसा हुआ. ' इति धारयेति ' से एक कदम आगे बढ़कर धर्म ' इति निर्वहति ' यानी जिसका निर्वहन किया जाए , हो गया. जिसे व्यक्ति स्वेच्छा से धारण करता था वही उसे अब दबाव में आकर ढोने को विवश हो गया. आज की भारतीय राजनीति में यही दबाव दिखने लगा है. धर्म जिसे कभी सभी तर्कों से परे माना जाता था , में तर्क घुलने लगा है. जैसे-जैसे तर्क घुले वैसे-वैसे इसमें छिपी बदबूदार गंध बाहर आने लगी. सदियों पुरानी इस बनावट में हाशिये पर जीवन जी रहे समूह के लिए ' ठेंगा ' उघड़ कर साफ़ दिखने लगा है. दलित , अल्पसंख्यक , महिला , कथित अछूत और पिछड़ा वर्ग सभी को धर्म में अपनी जगह शून्य नज़र आने लगी है. तर्क ने कथित धर्मगु