ये जगह नहीं है मेरे काम की .........
इंजीनियर , डॉक्टर , वैज्ञानिक , प्रबंधक , बैंकिंग या फिर शिक्षक बनना हमेशा से ही युवाओं का टशन रहा है । कोई समाजसेवक बन कर जहाँ समाज के हितों के लिए कुछ करना चाहता है तो साथ ही नाम कमाने की ललक भी उनमें जाहिरी तौर पर होती है । जो पढ़ने - लिखने में मेधावी हैं , वो कुछ अपने बल पर तो कुछ धन और सिफारिश का सहारा लेकर अपना मक़सद हासिल कर लिते हैं । लेकिन एक सवाल जो एक अरसे से चला आ रहा है , वो भी राजनीतिक गलियारे से कि क्यों एक कर्मठ और निष्ठावान युवा राजनीति से कोसों दूर रहता है ? क्यों वो नहीं चाहता कि वो भी राजनेता बनकर देश के लिए कुछ करे ? क्यों वो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने का ख्वाब नहीं देखता ? इसका जवाब यदि ढूँढा जाय तो जो वजह सामने निकालकर आती है वह है राजनीति में व्याप्त अनाचार , धूर्तता , हैवानियत , और लालच । सत्ता पाने की सनक में न तो कोई रिश्ता देखता है , ना ही किसी अनाचार की परवाह करता है । फिल्मों को समाज का वास्तविक आइना माना जाता है तो २००१ में आई एस शंकर निर्देशित फ़िल्म "नायक : द रियल हीरो " में स्पष्ट दिखाया गया था कि महाराष्ट्र