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सोशल मीडिया से शुरू हुए #MeToo के उद्देश्य को ही क्यों विकृत कर रहा है यह जरिया?

    घटनाएं जब इक्की-दुक्की हो रही हों, तो लोगों को उनपर बहुत जल्दी भरोसा हो जाता है. लेकिन जब यही घटनाएं एक के बाद एक सिलसिलेवार खुलने लगे तो वह रिवाज और आदत बन जाती है. भारत में #MeToo कैंपेन का हश्र कुछ ऐसा ही हो रहा है. महिलाओं ने अपनी जिंदगी के उन स्याह पहलुओं को खोलना शुरू किया जिसमे उनके साथ उनके किसी करीबी या किसी अजनबी पुरुष ने यौन शोषण किया था. धीरे-धीरे जब महिलाऐं इस कैंपेन से जुड़ने लगीं और अपना अनुभव साझा करने लगीं तो शुरुआत में सभी ने इस कैंपेन का समर्थन किया. कुछ महिलाओं ने अपने साथ हुई इस दुर्घटना में सिर्फ घटना के बारे में बताया जबकि आरोपियों के नाम गुप्त रखे. लेकिन जब #MeToo को जबरदस्त समर्थन मिला तो आरोपियों के नाम भी उजागर होने लगे. इक्की-दुक्की घटना से शुरू हुआ यह कैंपेन अब तक लाखों लोगों को जोड़ चुका है.  हाल ही में कई बड़ी शख्सियतों का नाम आने के बाद #MeToo के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं. कुछ लोग #MeToo को #SheToo कह रहे हैं तो कुछ लोगों का कहना है कि #MeToo जेंडर बायस्ड है, इससे उन पुरुषों को भी जुड़ना चाहिए जिन्हे कभी भी महिलाओं ने परेशान किया है. कुल मिलाकर #