मेघ और वसुधा का संगम

मेघ घिर के आते हैं अपने दोस्तों के संग अपनी वसुधा से फाग खेलने को ,
नभ से जल गिराते हैं होरी में गोरी को रंग देने को
ठिठोली कर गरजते हैं मानों तो चमकते हैं ,
हैं आतुर अपनी सजनी को रंग में भिगोने को । ।
वसुधा का भी तो क्या कहना , मचलती है देखकर सजना ,
है भर लेना चाहती वो सारे पलों को अपने आँचल में एक सपना संजोने को
चहकने लगी देखकर होली कि रंगत , प्रीत के रंग में रंग जाने कि है हसरत ,
दिल ख़ुशी से झूम उठा है पूरा जगत तैयार इनमें खोने को
वसुधा कि ख़ुशी का है नहीं कोई सानी ,
मेघ की सुन्दर छटा ही है काफी धरती को लुभाने को
नभ में बजने लगी शहनाई देखो मेघ की बारात आई ,सभी के होंठों पर है वसुधा की ख़ुशी छाई ,
मेघ वसुधा का है दिन आज एकाकार होने को
हैं आतुर अपनी सजनी को रंग में भिगोने को । ।

टिप्पणियाँ

  1. बीनाजी,

    कितनी अच्छी और हृदयस्पर्शी कविता लिखी है यह आपने । मेरे मन की गहराइयों को छू गई यह । मिलन चाहे प्रकृति का हो या मानवों का, उसकी पवित्रता अजर-अमर होती है । आपकी इस कविता में प्राकृतिक सौन्दर्य तथा कोमल भावनाओं का अद्भुत संगम है । इसकी प्रशंसा के लिए मेरे पास उपयुक्त शब्द नहीं हैं । इसे पढ़कर यकायक ही सब कुछ अच्छा लगने लगा है । एक अनूठी अनुभूति मेरे रोम-रोम में समा गई है ।

    जितेन्द्र माथुर

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