भारतीय मीडिया ! लब आज़ाद हैं या....?
आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है। बोलने और विचार अभिव्यक्ति की आज़ादी के चाहने वालों को इस दिन की ढेर सारी शुभकामनायें!
देश में लोकतंत्र के महापर्व का दौर है, इसी दौर में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का आना भी क्या खूब है। एक तरफ भारत के मतदाता अपने पसंदीदा नेता को देश की कमान सौंपने के लिए प्रतिबद्ध है वहीं इस प्रतिबद्धता के निर्माण-निर्णयन में मीडिया की भूमिका सबसे अहम् हो जाती है। यूँ तो हालिया वक़्त में प्रेस के तमाम माध्यम हैं लेकिन बात अगर त्वरित संचार की हो तो टीवी न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया से बेहद आगे है। ऐसे में इन दोनों का यह दायित्व तो बनता ही है कि वे निष्पक्ष, बिना किसी के प्रभाव या दबाव में आये जनता तक सच को पहुंचाए। कमाल की बात यह भी कि इस वर्ष विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का विषय है- ''चुनाव और लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका'।
मीडिया में ऐसा तब तक होता भी रहा जब तक उदारवाद और उसके जरिये पूंजीवाद ने इसे एक समाज सेवा से उद्योग नहीं बना दिया। 1990 के दशक में मीडिया का पूंजीकरण होने से चली यात्रा अब केवल व्यवसाय रह गई है। जहाँ न तो जनहित को वरीयता मिलती है न ही निष्पक्ष पत्रकारिता को। हालत यह है कि इस वर्ष यानी 2019 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूची में भारतीय मीडिया का स्तर दो पायदान गिरकर 140 पर पहुँच गया है। 180 देशों की इस सूची में पिछले वर्ष भारत का स्थान 138 और 2017 में 136 था।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा संकलित 2019 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स दिखाता है कि हिंसा में पत्रकारों की नफरत कैसे बढ़ गई है, जिससे भय में वृद्धि हुई है। सुरक्षित माने जाने वाले देशों की संख्या, जहां पत्रकार पूरी सुरक्षा के साथ काम कर सकते हैं, में गिरावट जारी है, जबकि सत्तावादी शासन मीडिया पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए हुए है।
कई देशों के पत्रकारों के लिए अपमान और हमले अब "व्यावसायिक खतरों" का हिस्सा हैं। भारत में (140 वें नंबर पर दो), जहां हिंदू राष्ट्रवाद के आलोचकों को ऑनलाइन उत्पीड़न अभियानों में "भारत विरोधी" के रूप में दर्शाया गया है। इंडेक्स के अनुसार वर्ष 2018 में भारत में छह पत्रकारों की हत्या इसी आलोचना की वजह से हुई।
वहीं तालिबान के आतंक से ग्रस्त अफगानिस्तान में भारत की तुलना में मीडिया को अधिक आज़ादी है। इंडेक्स में इस देश को 121 वें पायदान पर रखा गया है। हालाँकि भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान भारत से दो पायदान नीचे यानी 142 वें स्थान पर है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अधिनायकवाद का प्रचार, सेंसरशिप, धमकी, शारीरिक हिंसा और साइबर उत्पीड़न के कारण पत्रकारिता की स्वतंत्रता में नकारात्मकता देखी गई है। पत्रकारों के मारे जाने की संख्या में इजाफा इस क्षेत्र की बड़ी समस्या बनकर उभरी है।
अब बात भारत में मीडिया के स्तर की। आम चुनावों का समय है, इस समय मीडिया का सबसे महत्वपूर्ण काम होता है एक सामान्य मतदाता को सरकार की उपलब्धियों व उसकी खामियों के साथ विपक्ष के घोषणापत्र से जोड़ना। लेकिन यह कहना दुखद है कि मुख्य धारा की मीडिया अपने इस दायित्व को निभा पाने में पूरी तरह नाकाम रही है। जिस देश की मीडिया को सरकार की योजनाओं के प्रभाव को जनता तक पहुँचाने में दिलचस्पी होनी चाहिए थी, वह मीडिया सरकार से उसके थाली का ब्यौरा जानने में ज़्यादा दिलचस्पी ले रही है। किसान आत्महत्याओं को रोकने के बारे में सरकार की क्या योजना है यह जानने के बजाय उसे इस बात को जानने में ज़्यादा रूचि है कि प्रधानमंत्री को खाने में क्या-क्या बनाना आता है! कितने लोगों को रोजगार दिया गया यह जानने की अपेक्षा मुख्यधारा की मीडिया को यह जानना ज़्यादा जरुरी लगता है कि प्रधानमंत्री सोते कब हैं ! ये उदाहरण तो बानगी भर हैं, अगर इसकी और गहराई में पहुंचा जाए तो इसमें से निकलती दुर्गन्ध लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ की खौफनाक तस्वीर पेश करती है जहाँ सवाल पूछने वाला देशद्रोही करार दिया जाता है जबकि आतंकी घटनों को अंजाम देने वाले आरोपी को लोकसभा का टिकट दे दिया जाता है।
सच कहने और सरकार से सवाल करने वाले पत्रकारों को अपने सरपरस्तों से आज़िज आकर खुद अपना वीडियो चैनल शुरू करना पड़ा जहाँ वह अपनी बात कह सकें। यह एक सुखद कोना है जहाँ पर इस बात पर एक राहत की साँस ली जा सकती है कि आईसीयू में पड़ा भारत का मीडिया अभी इतना बेदम नहीं हुआ कि दम ही तोड़ दे। यक़ीनन यह एक सकारात्मक पक्ष है। हालाँकि अफ़सोस इस बात का भी है कि मुख्य धारा की मीडिया से जुड़ा आमजन इन चंद अमृत धाराओं तक नहीं पहुँच पाता है और सरकार की अगुवाई में भेड़ चाल का हिस्सा बनने को मजबूर है।
एक और तथ्य यह भी है कि जहाँ समाज के हर वर्ग की बात रखने का जिम्मा मीडिया का होता है वहीं मीडिया में हर वर्ग के प्रतिनिधित्व का न होना भी दुःखद है। दलित, अल्पसंख्यक, महिला व अनुसूचित जनजाति वर्ग की असमान भागीदारी एक सही मंच द्वारा आवाज न मिलने से कुंठा का शिकार हो रही है। यह देखना व कहना बेहद अफसोसजनक है कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों की समस्याएं पूंजीपतियों के नुकसान तले दबकर दम तोड़ जाती हैं। दलित समाज से जुड़ी परेशानियां प्रधानमंत्री द्वारा कुछ सफाईकर्मचारियों के पांव धो देने से अपने समाधान की ओर कदम नहीं बढ़ा पातीं हैं। 13 पॉइंट रोस्टर के विरोध में उठीं आवाजें मुख्यधारा की मीडिया के उस शोर के नीचे चीखती हुई रुंध जाती हैं जिसमे सरकार आर्थिक रूप से गरीब सवर्णों को 10 फीसद आरक्षण देने की वाहवाही होती है। अल्पसंख्यक वर्ग की मीडिया में हिस्सेदारी टीवी चैनलों पर केवल बुर्के पर रोक व तीन तलाक जैसे मामलों पर डिबेट करते हुए पूरी मान ली जाती है।
शिक्षा, रोजगार व समान अवसर तलाशते अवहेलना के शिकार इन वर्गों की मीडिया में लगभग निल भागीदारी, मीडिया के पतन का कारण है जिसे समझना होगा। साथ ही किसी विशेष व्यक्ति, संस्था या विचारधारा से प्रभावित मीडिया अपने मूल 'निष्पक्षता' से भटक रही है जिससे बचना होगा।
एक और तथ्य यह भी है कि जहाँ समाज के हर वर्ग की बात रखने का जिम्मा मीडिया का होता है वहीं मीडिया में हर वर्ग के प्रतिनिधित्व का न होना भी दुःखद है। दलित, अल्पसंख्यक, महिला व अनुसूचित जनजाति वर्ग की असमान भागीदारी एक सही मंच द्वारा आवाज न मिलने से कुंठा का शिकार हो रही है। यह देखना व कहना बेहद अफसोसजनक है कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों की समस्याएं पूंजीपतियों के नुकसान तले दबकर दम तोड़ जाती हैं। दलित समाज से जुड़ी परेशानियां प्रधानमंत्री द्वारा कुछ सफाईकर्मचारियों के पांव धो देने से अपने समाधान की ओर कदम नहीं बढ़ा पातीं हैं। 13 पॉइंट रोस्टर के विरोध में उठीं आवाजें मुख्यधारा की मीडिया के उस शोर के नीचे चीखती हुई रुंध जाती हैं जिसमे सरकार आर्थिक रूप से गरीब सवर्णों को 10 फीसद आरक्षण देने की वाहवाही होती है। अल्पसंख्यक वर्ग की मीडिया में हिस्सेदारी टीवी चैनलों पर केवल बुर्के पर रोक व तीन तलाक जैसे मामलों पर डिबेट करते हुए पूरी मान ली जाती है।
शिक्षा, रोजगार व समान अवसर तलाशते अवहेलना के शिकार इन वर्गों की मीडिया में लगभग निल भागीदारी, मीडिया के पतन का कारण है जिसे समझना होगा। साथ ही किसी विशेष व्यक्ति, संस्था या विचारधारा से प्रभावित मीडिया अपने मूल 'निष्पक्षता' से भटक रही है जिससे बचना होगा।
Bahut achcha likha hai aapne..
जवाब देंहटाएंAapko bhi dhero shubhkamnaye..
shukriya Tripurari ji..
हटाएंआपने एक संतुलित और उपयोगी लेख लिखा है बीना जी बिना अनावश्यक विस्तार के - गागर में सागर की भांति । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया माथुर जी। कैसे हैं आप?
हटाएं