कुछ अनकहे शब्द, कुछ अनछुई कल्पनाएँ
१- दिल ने कहा कुछ काम कर लूँ , कुछ सुहानी ये शाम कर लूँ ।
उस दिल के तार बज उठे, लबों पर गीत सज उठे।
सब ठीक चल रहा था, लेकिन उसकी ख़ुशी से कोई जल रहा था।
वो जलनखोर उसकी ख़ुशी कोई देख न पाया , जाकर अपने जैसों को बुला लाया।
सभी ने उजाड़ दिया उसके चमन को, ज़रा सी दया न आई उन बेरहम को।
दिल जूझता रहा, कुछ न सूझता रहा।
कोई उसके काम न आया, बुलाने पर भी कोई अवतार न आया।
क्या कहें बड़ी मुश्किल है, ये जूझने वाला कोई और नहीं मेरा ही दिल है।
२- हे मानव, हे ब्रह्मपुत्र ! उठो जागो होश में आओं,
अपने रक्त में लौह कि धारा बहाओ
इस धरती की करुण पुकार दिल को बींधे जाती है,
सोई आँखों को हर पल मींचे जाती है।
छाई रहती थी जहाँ शस्यश्यामला आज धुल वहाँ भरी है,
राष्ट्र की गरिमा गाथा आज धूमिल पड़ी है।
उठा लो अपने हाथों में एक गौरवमयी लेखनी और लिख डालो नयी तक़दीर इसकी,
अभी जो धूमिल पड़ी है बना डालो नयी तस्वीर इसकी।
बीना जी,
जवाब देंहटाएंकितनी भावपूर्ण और प्रेरक कविताएँ रची हैं आपने ! हार्दिक बधाई !
जितेन्द्र
dhanyavaad mathur ji..
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