मुकम्मल ख़्वाब, अधूरी जिंदगी

सुनयना अभी यही कोई 45 बसंत देख चुकी है. जिम्मेदारियों के चलते अब तक वह अपना घर बसा नहीं पाई. पिता के असमय गुजर जाने के बाद घर की इकलौती सन्तान होने के कारण कैंसर से जूझ रही माँ की वह एकमात्र सहारा थी. सुनयना ने 20 साल की उम्र से अपने पिता के छोड़े गए कुछ असबाब के सहारे घर की पूरी जिम्मेदारी उठा ली. माँ के इलाज और खुद को स्थापित करने की चाह के बीच कभी उसके हृदय में प्रेम की कोंपलें फूट नहीं पाई.
पिता के जाने के दस साल बाद माँ ने भी दुनिया से विदा ले लिया. सुनयना के पास अब कुछ नहीं बचा था सिवाय अपने पिता के कारोबार को और बड़ा व बुलंदियों पर ले जाने के. सुनयना ने ठान लिया था कि वह खुद को साबित करेगी. उसकी इसी जिद ने कारोबार को ऊँचाइयाँ तो दीं लेकिन उसका यौवन कब ढल गया उसे खुद इसकी भनक तक नहीं लगी..
आज ऑफिस में बैठी वह अपने 25 साल के सफ़र के बारे सोच रही थी कि उसकी पीए नीलिमा ने दरवाजे पर दस्तक दी. सुनयना ने थोड़ी संयत होते हुए उसे अंदर आने को कहा. नीलिमा ने मुस्कुराते हुए टेबल पर एक लिफाफा रख दिया. सुनयना ने सवाल भरी नज़रों से उसकी तरफ देखा तो नीलिमा ने कहा - मैम मुझे एक हफ्ते की छुट्टी चाहिए.
सुनयना ने सवाल किया - इतनी लंबी छुट्टी! सब ठीक तो है ना?
नीलिमा ने लगभग शर्माते हुए जवाब दिया- मैम वो छुट्टी..
सुनयना- ये तो!
नीलिमा- मैम, बहुत जरूरी है
सुनयना लंबी साँस छोड़ते हुए हंसी और एप्लीकेशन पर दस्तख़त कर दिया.

*एप्लीकेशन पर छुट्टियों की तारीख थी '7 से 14 फरवरी'*

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