अमेरिका व ईरान के तनाव के बीच, क्या हो सकती है भारत की भूमिका?
विश्व में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत
पश्चिम एशिया खासकर 'ईरान
व इराक' देशों
में युद्ध जैसी हलचल के चलते वैश्विक हितों में टकराव की स्थिति देखी जा रही है। चूँकि
पश्चिम एशिया के 10 तेल
प्रधान देशों में विश्व का 3.4
प्रतिशत ऊर्जायुक्त भू सतह पाई जाती है लेकिन बीपी के 2012 के 'विश्व ऊर्जा
की सांख्यिकीय समीक्षा'
के अनुसार पूरी दुनिया का 48
प्रतिशत तेल रिज़र्व और 38
प्रतिशत प्राकृतिक गैस भंडार अब तक इन्हीं दसों देशों में पाए गए हैं। जाहिर सी
बात है कि जब भी पश्चिमी एशिया में हितों का टकराव होगा तब-तब वैश्विक भूराजनीतिक
और आर्थिक स्थिति को स्वाभाविक रूप से प्रभावित होगी। इससे भारत भी अछूता नहीं है, इसलिए जैसे
ही संयुक्त अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के शीर्ष जनरल क़ासिम
सुलेमानी को मारने का फैसला किया वैसे ही भारत के हाथ पांव फूल गए। गौरतलब है कि
ईरान भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से एक है। भारतीय उपमहाद्वीप और फारस
की खाड़ी में मजबूत वाणिज्यिक,
ऊर्जा, सांस्कृतिक
और लोगों से लोगों के संबंध हैं।
आइये जानें, कैसा रहा है
भारत-ईरान का सम्बन्ध
आजादी के बाद भारत और ईरान के
बीच 15 मार्च 1950 को अपना राजनयिक संबंध स्थापित किया। तेहरान में दूतावास के
अलावा, ईरान
में भारत के दो वाणिज्य दूतावास हैं,
एक बंदर अब्बास में और दूसरा ज़ाहेदान में। 1979 की ईरानी क्रांति से पहले, ईरान के शाह
ने दो बार (मार्च 1956 और फरवरी 1978) भारत का दौरा किया और प्रधान मंत्री
जवाहरलाल नेहरू ने 1963 में ईरान गए। प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और प्रधान मंत्री
मोरारजी देसाई क्रमशः अप्रैल 1974 और जून में ईरान पहुंचे। दोनों देशों के बीच
शीर्ष नेतृत्व की यह आवाजाही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भी जारी
रही। अप्रैल 2001 में तेहरान का दौरा कर प्रधानमंत्री वाजपेयी के नेतृत्व में
दोनों देशों ने "तेहरान घोषणा" पर हस्ताक्षर किए, जिसने दोनों
देशों के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्रों का द्वार खोल दिया। राष्ट्रपति मोहम्मद
खातमी ने 24-28 जनवरी,
2003 के बीच भारत में रहे और उस वर्ष गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि बने।
दोनों पक्षों ने "नई दिल्ली घोषणा" पर हस्ताक्षर किए गए जिससे भारत और
ईरान के बीच सामरिक भागीदारी को बढ़ावा मिला। प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह भी
तेहरान में आयोजित 16 वें गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) शिखर सम्मेलन (28-31 अगस्त, 2012) में भाग लेने ईरान गए का दौरा किया। प्रधान मंत्री ने
सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई और राष्ट्रपति अहमदीनेजाद से मुलाकात की।
प्रधानमंत्री बनने के बाद
नरेंद्र मोदी ने 22-23 मई, 2016 में ईरान गए
और दोनों देशों के बीच 12
समझौता ज्ञापनों / समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ईरानी
राष्ट्रपति रूहानी और अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी की मौजूदगी में त्रिपक्षीय
समझौतों पर भारत, ईरान
और अफगानिस्तान के बीच पारवहन और परिवहन (Transit
and Transport)
पर एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
उसके बाद ईरान के राष्ट्रपति डॉ
हसन रूहानी ने 2018 में 15-17 फरवरी के बीच
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर भारत की पहली यात्रा में हैदराबाद आए।
इस यात्रा के दौरान उनके साथ एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल में कैबिनेट मंत्रियों, वरिष्ठ
अधिकारियों और व्यापार जगत के नेता भी आए। सौहार्दपूर्ण वातावरण में द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और
बहुपक्षीय मुद्दों पर व्यापक और रचनात्मक चर्चा हुई। 13 समझौता
ज्ञापनों / समझौतों भारत और ईरान के बीच हस्ताक्षर किए गए। यात्रा के दौरान
"अधिक कनेक्टिविटी के माध्यम से समृद्धि की ओर" शीर्षक वाले एक संयुक्त
वक्तव्य पर हस्ताक्षर किए गए।
ईरान-भारत के
सांस्कृतिक संबंध
वर्तमान में ईरान में भारतीय
दूतावास के परिसर में एक भारतीय सांस्कृतिक केंद्र काम कर रहा है। इस केंद्र का
उद्घाटन मई, 2013 में
NAM शिखर
सम्मेलन के लिए ईरान पहुंचे तत्कालीन विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद ने किया था।
प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान मई 2016 में तेहरान, भारत-ईरान
सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रम,
ICCR और ICRO,
ईरान, भारत
के राष्ट्रीय अभिलेखागार और ईरान के राष्ट्रीय पुस्तकालय और अभिलेखागार संगठन के
साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए।
भारतीय सांस्कृतिक केंद्र 2013 में स्थापित
किया गया था और 2018 में
इस केंद्र को स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र (SVCC) का नाम दिया गया। यह दूतावास नियमित रूप से संगीत /
सांस्कृतिक / साहित्यिक कार्यक्रमों और भारत- ईरान से संबंधित सांस्कृतिक /
साहित्यिक मुद्दों पर सेमिनार का आयोजन करता है । यहाँ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2018 और 2019 में आयोजित
किया गया था। 2019 में
एक सप्ताह का योग कार्यक्रम आयोजित किया गया था। महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती
(अक्टूबर 2018 से
अक्टूबर 2019 तक)
में 02
अक्टूबर 2018 को
दो विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए थे।
जून 2019 में
प्रतिष्ठित तेहरान मिलाद टॉवर (दुनिया की 6 वीं
सबसे ऊंची मीनार) के पास गांधी वाटिका की स्थापना में वृक्षारोपण, राजदूत और
ईरानी अधिकारियों के नेतृत्व में किया गया था।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के अध्यक्ष
विनय सहस्रबुद्धे ने 30
नवंबर से 2
दिसंबर, 2018 के
बीच ईरान का दौरा किया। इस दौरान 'संस्कृत
व्याकरण पाणिनि' के
विशेष संदर्भ में 'फारसी
और संस्कृत भाषाओं के बीच भाषाई संबंध'
विषयक संगोष्ठी का उद्घाटन किया गया।
भारत में
ईरान की राजनयिक उपस्थिति
नई दिल्ली में ईरान का अपना
दूतावास है। इसके अलावा भारत में ईरान के दो महावाणिज्य दूतावास मुंबई व हैदराबाद
में और नई दिल्ली और मुंबई में दो सांस्कृतिक केंद्र हैं।
भारत की तेल
आपूर्ति में ईरान
ईरान भारत को प्रमुख रूप से तेल, उर्वरक और
रसायन निर्यात करता है,
जबकि भारत से अनाज,
चाय, कॉफी, बासमती चावल, मसाले और
जैविक रसायन आयात करता है। ईरान में भारत के लिए कृषि, रसायन, मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स, कागज और कागज
से बने उत्पाद, मानव
निर्मित फाइबर और धागे और अति आवश्यक तेलों जैसे क्षेत्रों में निर्यात के बड़े
अवसर हैं।
2018-19 में
ईरान को भारत का निर्यात 3.51
बिलियन अमेरिकी डॉलर था,
जबकि आयात 13.52
बिलियन अमेरिकी डॉलर था। व्यापार असंतुलन मुख्य रूप से ईरान से भारत के तेल के
आयात का कम होने के कारण है।
भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का 80 प्रतिशत से
अधिक आयात करता है और प्रति दिन 4.5
मिलियन बैरल
तेल आयात करता है। भारत के शीर्ष आपूर्तिकर्ता इराक के साथ खाड़ी से
अपने कच्चे तेल का दो-तिहाई हिस्सा खरीदता है। भारत ने 2018-19 में 207.3 मिलियन टन
कच्चे तेल का आयात किया है,
जो कि $ 111.9
बिलियन था, यह 2017-18 में $ 87.8 बिलियन से
अधिक था। CARE रेटिंग्स
के एक विश्लेषण के अनुसार कच्चे तेल की कीमतों में प्रति डॉलर की बढ़ोतरी से भारत
का वार्षिक तेल आयात बिल 1.6
बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगा।
तेल की कीमतों में बढ़ोतरी को
आमतौर पर मुद्रास्फीति के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है और इससे आर्थिक
विकास में गिरावट आती है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुसार, राजकोषीय
घाटे के मामले में, कच्चे
तेल की कीमतों में 10
डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से 12.5
बिलियन डॉलर का अतिरिक्त भार पड़ता है,
जिससे करों में कोई बदलाव नहीं होता परिणामस्वरूप तेल उपभोक्ताओं को अधिक कीमत
चुकानी पड़ती है। पिछले वित्त वर्ष की सामान तिमाही में 19.03 बिलियन डॉलर
के घाटे की तुलना में सितंबर तिमाही के दौरान चालू खाता घाटा 6.25 बिलियन डॉलर
था। विश्लेषकों का कहना है कि इस समय चालू खाता घाटा या राजकोषीय घाटे को कम करना
मुश्किल है। अब यह बताने की जरुरत नहीं है कि खाड़ी भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए
कितना महत्वपूर्ण है। यह एक स्पष्ट कारक है कि नई दिल्ली अपने तेल और गैस की
जरूरतों का 80 प्रतिशत
आयात करता है। साथ ही इस क्षेत्र में लगभग 8-9
मिलियन भारतीय प्रवासी रहते हैं जो भारत की अर्थव्यवस्था में योगदान भी करते
हैं।
यूएस -ईरान
तनाव के बीच चाबहार बंदरगाह पर असर
संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान
के बीच तनाव के बीच संभावित किसी से निपटने के लिए भारतीय नौसेना ने बुधवार को
खाड़ी क्षेत्र में अपने युद्धपोत तैनात कर दिए। भारतीय नौसेना ने यह सब भारत की
समुद्री व्यापार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया। इस बीच, भारत में
ईरान के राजदूत अली चेगेनी ने कहा कि वर्तमान स्थिति से चाबहार बंदरगाह का विकास
प्रभावित नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि ईरान संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ
तनाव को कम करने के लिए भारत द्वारा किसी भी शांति पहल का स्वागत करेगा। चेगेनी ने
कहा “चाबहार
पोर्ट भारत, ईरान, अफगानिस्तान, राष्ट्रमंडल
के सदस्य, यूरोप, पूरे फारस की
खाड़ी के बीच बहुत अच्छी दोस्ती का प्रतीक है। इसका संबंध केवल ईरान और भारत से
नहीं है। इस बारे में चिंता करने की जरुरत नहीं है"।
दिलचस्प बात यह है कि बीते
दिसंबर में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को एक लिखित आश्वासन दिया था कि वह
चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए भारत को उपकरणों की खरीद हेतु वैश्विक
बैंकों से $85 मिलियन
की कीमत का वित्त पोषण करने में सहायता करेगा। नवंबर 2018 में, संयुक्त
राज्य अमेरिका ने फारस की खाड़ी के देशों पर लगाए गए प्रतिबंधों से बंदरगाह को छूट
प्रदान की थी। बता दें कि ईरान के दक्षिण-पूर्वी तट (फ़ारस की खाड़ी के बाहर) पर
सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित,
चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए क्षेत्रीय समुद्री पारगमन
यातायात के विकास के लिए एक बड़ा रणनीतिक महत्व रखता है।
स्पष्ट है कि
ईरान और भारत के बीच एक लम्बे समय से बेहतरीन सम्बन्ध है और इसका प्रमाण है, हाल ही ईरान
का आया वह बयान जिसमे उसने कहा है कि 'अमरीका से तनाव कम करने में भारत
की किसी भी शांति की पहल का हम स्वागत करेंगे'। दिल्ली में
ईरानी राजदूत अली चेगेनी ने कहा कि दुनिया में शांति बनाए रखने में भारत अच्छी
भूमिका निभाता है। यह भारत और ईरान के बीच के मजबूत संबंधों को दर्शाता है। ऐसे
में भारत और अमेरिका खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अमेरिकी राष्ट्रपति
डोनाल्ड ट्रम्प,
के पल-पल बदलते समीकरणों के बीच ईरान-भारत के पारस्परिक
संबंधों को सहेजने की कोशिश होती रहे।
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