तो क्या लालू के जेल जाते ही ढह जाएगा 2019 का विपक्ष?

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से न केवल केंद्र बल्कि बीजेपी शासित 19 राज्यों में विपक्ष कोमा अवस्था में है. देश की प्रमुख पार्टियों में से एक कांग्रेस निरंतर नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले सत्ता पक्ष के खिलाफ एक सशक्त विपक्ष खड़ा करने का प्रयास कर रही है. इस प्रयास में बिहार के सर्वमान्य नेता लालू प्रसाद यादव की भूमिका को सबसे अहम् माना जा रहा था. लेकिन चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू के जेल जाने के बाद विपक्ष की यह उम्मीद अब फिर से दम तोड़ती नज़र आ रही है.

हालांकि बार-बार यह कहा जाता रहा है कि लालू के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव सम्हालेंगे. तेजस्वी को लालू की छाया के रूप में प्रदर्शित करने का प्रयास भी किया जाता रहा है. लेकिन इस बात से दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि तेजस्वी समेत लालू के पूरे परिवार पर भ्रष्टाचार का केस अदालत में विचाराधीन है. जिसपर फैसला कभी भी आ सकता है. केंद्र की बीजेपी सरकार लालू के अभेद्य किले में सेंध लगा चुकी है. कभी लालू के प्रिय मित्र रहे बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के खेमे में जा चुके हैं. बिहार में बीजेपी और नीतीश की जेडीयू का गठबंधन सत्तानशीं है.

ऐसे में यह देखना वाकई दिलचस्प है कि जिस लालू के दम पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल 2019 में बीजेपी की कमर तोड़ देने की बात कर रहे थे वे अब क्या करेंगे. क्योंकि एक तरफ जहाँ कांग्रेस के नवोदित अध्यक्ष राहुल गाँधी को राजनीति का अपरिपक्व खिलाड़ी माना जाता रहा है वहीं बीजेपी इस समय अमित शाह, नरेंद्र मोदी, स्मृति ईरानी, योगी आदित्यनाथ जैसे कद्दावर नेतृत्व से सुसज्जित है.

कांग्रेस बनाम बीजेपी की यह जंग वास्तव में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों बनाम बीजेपी के बीच है. लेकिन लालू के जेल जाने के बाद यह गठजोड़ कुपोषण का शिकार हो सकता है. 

टिप्पणियाँ

  1. आपका विश्लेषण रोचक एवं विचारणीय है बीना जी । लेकिन मैं समझता हूँ कि विपक्षी राजनीति लालू एवं मुलायम जैसों के भरोसे नहीं हो सकती । राहुल गाँधी ने अपनी भूलों से सबक सीखा है । अब वे भाजपा विरोधी राजनीति की अगुवाई कर सकते हैं । और उन्हीं को करनी चाहिए । जहाँ तक सत्तारूढ़ दल के पास दिग्गजों की सेना के होने का प्रश्न है तो हमें स्मरण रखना चाहिए कि जनसमस्याओं का समाधान न निकलने पर केवल वक्तृत्व एवं नेतृत्व कला से मतदाताओं को अपने पक्ष में नहीं किया जा सकता । यदि ऐसा होता तो देश के सबसे प्रखर वक्ता अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 2004 में चुनाव नहीं हारती ।

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  2. राजनीति जिस गर्त में जा रही है वह वाकई चिंताजनक स्थिति है ..

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