हितों की लालच में अपनी गरिमा को भूलता भारतीय प्रेस




राष्ट्रीय प्रेस दिवस - 16 नवंबर - भारत में स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस का प्रतीक है. यह वह दिन था जिस पर प्रेस परिषद ने एक नैतिक निगरानी के रूप में काम करना शुरू किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रेस ने इस शक्तिशाली माध्यम से अपेक्षाकृत उच्च मानकों को न केवल बनाए रखा बल्कि यह भी कि वह किसी भी बाहरी कारकों के प्रभाव या खतरों से मुग्ध नहीं था. यद्यपि कई प्रेस या मीडिया काउंसिल दुनिया भर में हैं, भारतीय प्रेस परिषद एक अद्वितीय इकाई है- क्योंकि यह एकमात्र संस्था है जो राज्य के उपकरणों के ऊपर भी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए अपने अधिकारों का इस्तेमाल करती है.

                                                                                              - प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया..

ऊपर लिखी गई बातें प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया की वेबसाइट पर मौजूद हैं   मौजूदा समय में प्रेस की जिस आज़ादी की बात समय समय पर उठाई जाती है, यह स्वीकारना मुश्किल होता है कि क्या प्रेस अपने कर्तव्यों के प्रति भी उतना ही प्रतिबद्ध है जितना कि उसे होना चाहिए?  प्रेस को उसकी निष्पक्षता के लिए जाना जाता रहा है लेकिन बदलते वक़्त में यह गुण कहीं न कहीं अपनी चमक खो रहा है. आज का प्रेस अब किसी न किसी के प्रभाव में आता दिखाई दे रहा है. प्रेस पर अक्सर यह आरोप लगता है कि वह अब कॉर्पोरेट्स, बिज़नेस, राजनीतिक दलों के प्रभाव में आकर अपनी निष्पक्षता को दर किनार कर चुका है. मीडिया से जुड़े लोग अपना प्रभाव बढ़ाने और लोगों में अपनी धाक जताने के लिए रसूखदार लोगों के साथ सेल्फी लेने के लिए आपस में ही मारपीट तक करते दिखाई दिए हैं जो की बेहद शर्मनाक है.

आम लोगों की जिन मूलभूत जरूरतों के मुद्दों को सरकार तक पहुंचाने की जिम्मेदारी प्रेस पर होती है वही आज फाइव स्टार टाइप यानी बाबा,भूत, हाई क्लास मर्डर-किडनैपिंग-रेप केस जैसी खबरें परोसता है. अपने हितों के लिए अपनी प्रासंगिकता खो रहा मीडिया लोगों का भरोसा भी खो रहा है. रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम् मुद्दे प्रेस की प्राथमिकताओं से गुम हो रहे हैं जो कि काफी खतरनाक स्थिति है. मीडिया से जुड़े लोग अपना प्रभाव बढ़ाने और लोगों में अपनी धाक जताने के लिए रसूखदार लोगों के साथ सेल्फी लेने के लिए आपस में ही मारपीट तक करते दिखाई दिए हैं जो की बेहद शर्मनाक है.

हालात यह है कि कोई भी मीडिया हाउस अब इन आरोपों को ख़ारिज नहीं कर सकता कि आज उनकी निष्पक्षता किसी व्यापार से प्रभावित नहीं है! यह दुखद है साथ ही भयावह भी. आज लोग किसी भी खबर पर भरोसा करते हैं क्योंकि उन्हें प्रेस की निष्पक्षता पर भरोसा है. लेकिन अगर मीडिया यानी प्रेस का यही बायस्ड रवैया रहा तो मीडिया केवल मनोरंजन का जरिया बन कर रह जाएगा. 

टिप्पणियाँ

  1. मैं आपके विचारों से पूर्णरूपेण सहमत हूँ बीना जी । प्रेस अब अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए निहित स्वार्थों के हाथों की कठपुतली बनकर रह गया है । अब गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे निर्भीक और समाजहिताभिलाषी पत्रकार तो ढूंढे नहीं मिलते । और जो इक्का-दुक्का अपने दायित्व को सत्यनिष्ठा से निभाने का प्रयास करते हैं, उनके प्राणों पर आ बनती है ।

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  2. बिलकुल सही कहा आपने माथुर जी..

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