'गुजरात मॉडल' के दम पर केंद्र में आयी बीजेपी को अब नहीं रहा इस फॉर्मूले पर भरोसा!


संसद के शीतकालीन सत्र की तारीख अब तक नहीं आई है. खबर है कि इस बार का शीतकालीन सत्र को छोटा या फिर पूरी तरह से स्थगित कर दिया जाएगा. दरअसल यह सब इसलिए है क्योंकि जिस वक़्त शीतकालीन सत्र बुलाया जाता है ठीक उसी समय पर देश के दो महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होने हैं. महत्वपूर्ण इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित केंद्र का कैबिनेट हिमाचल प्रदेश और गुजरात में पार्टी के चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं.
दोनों राज्यों में से गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. पार्टी के महासचिव राहुल गाँधी गुजरात में पूरी तरह से चुनाव प्रचार के लिए अपना तम्बू लगा चुके हैं. वहीं पीएम मोदी और भाजपा प्रमुख अमित शाह भी प्रदेश में धुआंधार रैलियां और रोड शो कर रहे हैं.

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जो बीजेपी गुजरात मॉडल के नाम पर तत्कालीन गुजरात सीएम नरेंद्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री प्रत्याशी प्रोजेक्ट किया और भारी बहुमत से चुनाव जीतकर केंद्र में आयी, उसे ही आज अपने इस फॉर्मूले पर भरोसा नहीं है.

शायद इसीलिए अपनी सभाओं में मोदी, अमित शाह और उनके प्रमुख स्टार प्रचारक गुजरात और केंद्र में अपनी उपलब्धियों को बताने के बजाय प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को कोसते दिखाई देते हैं. ऐसा लगने लगा है कि वे प्रदेश की जनता को इस बात का भरोसा दिला रहे हैं कि गुजरात की बेहाली के पीछे कांग्रेस का हाथ है न कि उनका स्वयं का.

फिलहाल बीजेपी ने गुजरात विजय के लिए अपनी पूरी ताकत  लगा दी है. गौरतलब है कि 2014 की जीत के बाद 4 बार के विधानसभा चुनावों में गुजरात की जनता की पहली पसंद रही बीजेपी इस बार सबसे ज्यादा चिंतित नज़र आ रही है.यही कारण है कि पीएम सहित भाजपा के सभी दिग्गज गुजरात में डेरा डाल चुके हैं.

वजह साफ़ है कि पाटीदार और दलित समूह बीजेपी से ख़ासा खफा हैं और उनकी नज़दीकियां लगातार कांग्रेस से बढ़ रही हैं. जिसे नज़रअंदाज़ करना बीजेपी के लिए कतई आसान नहीं है. फिलहाल इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को विपक्ष से कड़ी टक्कर मिलने की पूरी संभावना दिखाई दे रही है. 

टिप्पणियाँ

  1. आपका आलेख तर्कपूर्ण है बीना जी लेकिन हमारे देश की जनता प्रायः तर्क एवं विवेक को उपेक्षित कर के ही मतदान करती है । अतः मैं चुनावी परिणामों पर कोई भी भविष्यवाणी करने से बचता हूँ । इस संदर्भ में मैं अहंकारी वर्तमान प्रधानमंत्री, उनकी अति-शक्तिशाली चतुरंगी सेना एवं उनके कोटि-कोटि अंधभक्तों को केवल एक ही बात कहना चाहता हूँ - 'कुछ लोगों को कुछ समय तक तो मूर्ख बनाया जा सकता है, सभी लोगों को सदा के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता' ।

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  2. 73 साल पुराना भारतीय लोकतंत्र आज भी अपने शैशवकाल में है .. दुःखद है यह

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