तो क्या ऊंचाहार के एनटीपीसी में हुई महादुर्घटना की पृष्ठभूमि पहले ही लिखी जा चुकी थी ?



ऊंचाहार स्थित एनटीपीसी में बुधवार को दोपहर के खाने के बाद लगभग 3:30 पर जबरदस्त विस्फोट हुआ. एक स्टीम पाइप फटने के कारण संयंत्र में यह विस्फोट हुआ था. प्लांट पूरी तरह से आग की लपटों से घिर गया और गर्म राख 25 से 30 फ़ीट ऊपर हवा में तैर गया. इसी बीच भारी अफरा तफरी में कई मजदूर इस विस्फोट के दबाव में पहले तो हवा में ऊपर उठ गए और दबाव काम होने पर सीधे जमीन पर आ गिरे. फ्लाई ऐश का भारी दबाव उनके शरीर पर आ गिरा जिससे कुछ मजदूरों ने वहीं मौके पर ही दम तोड़ दिया तो कुछ अस्पताल पहुँचने के बाद. सैंकड़ों मजदूर गर्म राख से झुलस गए, जिनमे कइयों की हालत गंभीर बताई जा रही है.

हुआ क्या 

प्रश्न यह उठता है कि ऐसा आखिर हुआ कैसे? आज इस का भी खुलासा हो गया. सूत्रों की माने बॉयलर के सेफ्टी वॉल्व सोमवार से ही ठीक से काम नहीं कर रहे थे. इसको लेकर टेक्नीशियन ने आगाह भी किया था. वहीं सेफ्टी वॉल्व का चोक होना साफ इशारा है कि किसी भी क्षण कोई बड़ा हादसा हो सकता है. फिर भी प्लांट को चालू रखा गया.

घायलों का इलाज लखनऊ के सिविल हॉस्पिटल, केजीएमयू और पीजीआई में चल रहा है. इसके अलावा कुछ घायलों को एयर एम्बुलेंस से दिल्ली भी रेफर किया गया है. वहीं (एनटीपीसी) के प्लांट में हुए हादसे पर योगी सरकार को नोटिस जारी किया है. एनएचआरसी ने 6 हफ्ते में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है.

एनटीपीसी अब कौन से कदम उठाएगी 
इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में घायल हुए सभी व्यक्तियों के चिकित्सा व्यय एनटीपीसी वहन करेगा. पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता देने के लिए एनटीपीसी कर्मचारी अपने एक दिन का वेतन देंगे.

यह तो वे कदम हैं जो दुर्घटना के बाद उठाये जाने हैं. पर उन असावधानियों का क्या जिसकी वजह से ऐसी त्रासदी फिर से घट सकती हैं. जैसे आज खुलासा हुआ कि पाइप के चोक होने की रिपोर्ट सोमवार को ही प्लांट के तकनीशियन विभाग को दिया जा चुका था. बावजूद इसके चोक हुआ यह भाग बिना किसी लाग लपेट के संचालित होता रहा जब तक कि वहां काम कर रहे मजदूरों की जान नहीं चली गयी! स्पष्ट है कि इसमें चूक दोनों तरफ से हुई, प्रबंधन और तकनीशियन विभाग दोनों ही इस दुर्घटना के समान रूप से जवाबदेह हैं.

प्रश्न यह है कि पावर प्लांट जैसी अतिसंवेदनशील जगह पर ऐसी लापरवाही को और कितनी बार नज़रअंदाज किया जाएगा? 2009 में जयपुर में इंडियन आयल डिपो में ऐसी ही लापरवाही के कारण तमाम जानें गयीं थीं.लेकिन सबक नहीं लिया गया और ऊंचाहार में यह दुर्घटना घट गयी.

भविष्य में ऐसी महादुर्घटना के न होने की भी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि महारत्न का दर्जा प्राप्त एनटीपीसी का रांची में निर्माणाधीन नार्थ करणपुरा थर्मल पावर स्टेशन पर जब पड़ताल की गयी तब ऐसे ही कुछ बड़े लूपहोल पाए गए. निर्माणाधीन इस पावर प्लांट में मजदूरों की सुरक्षा का कोई प्रबंध नहीं किया गया है. कई मजदूरों ऐसे भी मिले जो बिना सुरक्षा जैकेट और हेलमेट के काम कर रहे थे. जब प्रबंधन से इस बारे में बात कि गयी तब पता चला कि ये कैज़ुअल लेबर हैं न कि नियमित मजदूर.

गौरतलब है कि बुधवार दोपहर को ऊंचाहार के पावर प्लांट में हुई दुर्घटना में घायल और मृत ऐसे मजदूरों के नाम सामने आ रहे हैं जो कैज़ुअल लेबर हैं और उनका नाम नियमित मजदूरों की श्रेणी में दर्ज नहीं है. यहाँ प्रश्न यह उठता है कि इन पीड़ित कैज़ुअल मजदूरों और उनके परिवारों को एनटीपीसी किस प्रकार से क्षतिपूर्ति का हर्जाना देगी? जैसा कि रांची में निर्माणाधीन एनटीपीसी के पावर प्लांट में कार्यरत कैज़ुअल लेबर के पास सुरक्षा के लिए कोई भी इंतज़ाम नहीं पाया गया,भविष्य में ऐसी कार्यशैली और जवाबदेही के अनदेखेपन की बदौलत ऐसी ही किसी बड़ी त्रासदी से इंकार नहीं किया जा सकता है.

टिप्पणियाँ

  1. आपका लेख तथ्यपरक है । एनटीपीसी के ऊंचाहार स्थल से सम्बद्ध एक परियोजना से मेरा नियोक्ता संगठन (भेल) भी जुड़ा हुआ है । ऐसी दुर्घटनाएं अत्यंत दुखद हैं । जब भी मैं पुरानी फ़िल्म 'काला पत्थर' को देखता हूँ तो यही लगता है कि चार दशक पूर्व उस फ़िल्म में निर्दोष जीवनों के मूल्य पर खड़ी की गई लालच की जो दीवार दर्शाई गई थी, वह आज भी यथावत् विद्यमान है और सार्वजनिक क्षेत्र के महती नवरत्न एवं महारत्न संगठन भी उतने ही अनुत्तरदायी हैं जितने की अधिकाधिक लाभार्जन के प्रलोभन में जकड़े निजी व्यवसायी । सभी को तो मौद्रिक क्षतिपूर्ति मिलेगी भी नहीं लेकिन जिन्हें मिल भी जाएगी, उनके परिवारों को हुई मानवीय क्षति की पूर्ति तो कभी भी नहीं हो सकेगी । ऐसी त्रासदियां और उनकी पुनरावृत्ति हमारे महान (?) देश की कार्य-संस्कृति एवं व्यवस्था की विडम्बना ही हैं । क्या किया जाए बीना जी ? सत्ता एवं अधिकार के उच्च आसनों पर तो संवेदनहीन लोग बैठे रहते हैं जिनके बधिर कानों तक किसी भी पीड़ित का आर्तनाद पहुँचता ही नहीं ।

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  2. उम्मीद है यही आर्तनाद किसी दिन सत्तापरस्तों के कानों की मैल को चीरता हुआ सीधे इनके हृदय में शूल की तरह जा धंसेगा ..

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