राजभाषा, राष्ट्रभाषा, साहित्य या बोलचाल, किसकी भाषा है हिन्दी?

संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में मान्यता दी गई है. उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में हिन्दी को प्रथम राजकीय भाषा के रूप में मान्यता मिली है जबकि असल में व्यावहारिक रूप में ऐसा होता नहीं है. संविधान में हिन्दी के अतिरिक्त भाषा सूची में 21 अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ को मान्यता दी गई. जैसा कि कहा जा चुका है कि उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों जैसे, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में हिन्दी को प्राथमिक भाषा का दर्जा दिया गया है. 

संविधान और देश के निर्माताओं का विचार था कि देश में एक ऐसी भाषा प्रचलन में हो जिसके माध्यम से बहुभाषाई भारत में संवाद स्थापित करने में कोई समस्या न आये. बहुमत के हिसाब से देखा जाए तो उस समय हिन्दी ही ऐसी भाषा नज़र आई जिसका प्रयोग कई राज्यों में किया जाता रहा है. दक्षिण भारत में हिन्दी की अपेक्षा उनकी अपनी क्षेत्रीय भाषा को राजकीय भाषा के रूप में मान्यता देने की होड़ मची रही. जिससे हिन्दी उस राज्य की तीसरी भाषा बनकर रह गई. अंग्रेजी दूसरी भाषा के रूप में भारत के सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में बिना किसी प्रतिस्पर्धा के बनी हुई है. 

हिन्दी साहित्य की स्थिति भले ही बुरी न हो लेकिन देश की दूसरी भाषा अंग्रेजी के सामने आज भी औसत है. कारण है देश में अंग्रेजी को अपना माई-बाप मानकर उसके पीछे दीवाने होने की होड़. हिन्दी में बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल करने वाले युवाओं के पास केवल शिक्षण करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं बचता. छोटी से लेकर बड़ी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में हिन्दी के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है. एक साँस में अंग्रेजी बोलने और लिखने वाले प्रतिभागी देश के शीर्ष पदों पर बैठे हैं जबकि हिन्दी से पीएचडी करने वाले युवा को चतुर्थ वर्ग की नौकरी करने पर विवश होना पड़ता है. हिन्दी के रस, अलंकार, कविता, गद्य यह सभी किताबी बातें हो गई हैं, वास्तविक जीवन में इनका कोई अर्थ नहीं.

आज इक्कीसवीं सदी 20 वें दशक में हिन्दी साहित्य के उभरते हुए किस कवि/कवयित्री या लेखक/लेखिका का नाम लिया जा सकता है? कवि स्व.गोपालदास नीरज की पीढ़ी के बाद नए उभरते हुए साहित्यकारों की रूचि अंग्रेजी की तरफ घूम रही है. हिन्दी पट्टी के लोगों में विशुद्ध हिन्दी ज्ञान का अभाव है. सामान्य हिन्दी बोलने में भी लोगों को लज्जा का अनुभव होता है. यहाँ तक कि '14 सितम्बर को हिन्दी दिवस' पर लम्बे-लम्बे भाषण देने वाले भी जानते हैं कि असल में 'हिन्दी' को किस तरह से पतित किया गया है. ऐसे में यहाँ 'हिन्दी दिवस' पर शुभकामनाएं देते हुए 'महिला दिवस' की अनुभूति हो रही है. जिस तरह मंच पर खड़े नेता व अन्य कथित बुद्धिजीवी वर्ग 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता' का नाद करते हैं और मंच से उतरते ही स्त्री को 'बोटी' के सिवाय कुछ नहीं समझते वैसे ही 'हिन्दी दिवस' भी केवल त्यौहार रह गया है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं. 

अंत में जिन्हे ऐसा नहीं लगता वही स्पष्ट कर दें- राजभाषा, राष्ट्रभाषा, साहित्य या बोलचाल, किसकी भाषा है हिन्दी? 

टिप्पणियाँ

  1. ज्वलंत प्रश्न किया है आपने बीना जी लेकिन उत्तर देने वाला कोई नहीं है । जब हिंदी वाले ही हिंदी को सरकारी औपचारिकता से अधिक कुछ न समझें तो उसका तारणहार कौन बन सकता है (कौन बनना चाहता है ?) ।

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  2. वाकई सही सवाल किया आपने 'कौन बनना चाहता है'

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