जहाँ जनता से जुड़े सवाल दम तोड़ रहे हैं, वहीं सरकार का जवाब न देने का तरीका वाकई लाजवाब है!

रूपया गिर रहा है, डीज़ल -पेट्रोल और गैस के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. शिक्षा में NPA की स्थिति ऐसी है कि ऋण लेकर शिक्षा पूरी कर चुके इंजीनियर-डॉक्टर बेरोजगार हैं. पीएचडी होल्डर चतुर्थ समूह की नौकरियों के लिए आवेदन करने पर मजबूर हैं. इलाहाबाद, दिल्ली, पुणे, बेंगलोर जैसे एजुकेशन हबों पर खेप की खेप बेरोजगारी देश की जीडीपी के आंकड़े लगाते हुए अपने बाल सफ़ेद कर रही है. धर्म के संक्रमण की गति इतनी तेज है कि राह चलते लोग इसके शिकार हो रहे हैं. महिला सुरक्षा का हाल यह है कि नवजात बच्चियों से लेकर मृत्यु के द्वार पर खड़ी वृद्धाएं तक अस्मत लुट जाने की दहशत में हैं. गंवार और अंधभक्त कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखा रहे हैं जबकि सरकार से सवाल करने वालों को देशद्रोह के आरोप में जेल का रास्ता दिखाया जा रहा है.

दुग्ध उत्पादन दुनिया में नंबर वन भारत भुखमरी की सूची में 119 देशों में 100 वें नंबर पर है. यह हालात तब है जबकि भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. जनसँख्या में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. सबसे ज़्यादा युवा भारत में रहते हैं. खुश रहने वाले 156 देशों की सूची में भारत 133 वें नंबर पर है. प्रतिभा के मामले में 63 देशों में से भारत 51 वें नंबर पर है जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि देश में रोजगार की भरमार है, वास्तव में युवाओं में उसे हासिल करने की योग्यता ही नहीं है.

वर्ष 2017 में वैश्विक शांति मामलों की 163 की सूची में 137 वें नंबर पर खड़े भारत में पिछले कुछ वर्षों में धर्म, जाति-नस्ल, भेद, खानपान और वेशभूषा के नाम पर आई गंभीर अस्थिरता किसी से छुपी नहीं है. आदिवासी क्षेत्रों में पूंजीपतियों के बढ़ते दखल और उसमे सरकार की सहभागिता द्वारा पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 यानी Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act 1996 (PESA 1996) का उल्लंघन कर भारत गणराज्य के संरक्षण से आदिवासी जनजाति को वंचित करने का प्रयास अफसोसजनक है.

जब यही सवाल सरकार से किया जाता है तब प्रधान सेवक कहते हैं, उनकी जान को खतरा है. और बस सारे सवाल वहीं मृत हो जाते हैं. यहाँ जीवित की कोई कीमत नहीं और गढ़ी हुई संभावनाओं के जरिये तार्किक सवालों का जवाब ना देने का सरकारी तरीका वाकई लाजवाब है. है ना?

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