एक और नया साल, पर जारी हैं पुरानी धारणाएं….

वर्ष 2017 अपनी नवीनता की चौखट पार कर चुका है। धीरे-धीरे नए वर्ष पर लिए गए संकल्प अपनी दृढ़ता पर टूटने की कगार पर जा पहुंचे हैं। पांच राज्यों का आगामी चुनाव और उसका यौवन चरम पर है। सभी राजनीतिक दल गुण्डाराज, भ्रष्टाचार, महिला सुरक्षा, अर्थ व्यवस्था में सुधार जैसे बड़े-2 मुद्दों को अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल करने को कटिबद्ध खड़े हैं। वर्ष 2017 अपनी यादें इरादे एवं आगामी वर्ष के लिए कुछ और वादों के साथ तैयार हैं। इस रूमानियत के बीच पहली जनवरी के पदार्पण के तुरंत बाद ही सिलिकन वैली में कुछ ऐसा घटा जिसने इसकी नवीनता पर फिर से प्रश्नचिह्न लगा दिया। हुआ यह कि 31 दिसंबर की रात बेंगलुरू में एम.जी. रोड व ब्रिगेड रोड पर नए साल का जश्न मनाया जा रहा था। तमाम लड़के-लड़कियां इस जश्न में शामिल हुए थे। इसी बीच जश्न में शामिल लड़कियों पर कुछ लड़कों ने फब्तियां कसीं। पहले इन फब्तियों को नज़र अंदाज किया गया। लेकिन जब अभद्रता का स्तर बढ़ गया तो लड़कियों ने लड़कों की इन बद्तमीजियों को रोकने का प्रयास किया। यह प्रयास असफल रहा तब वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों जिनमें कुछ महिला पुलिस कर्मी भी थीं से मदद की गुहार की गई। इस पर पुलिसवालों की प्रतिक्रिया अलबत्ता ही थी उनके द्वारा कहा गया कि यह ऐसा मामला है जिसपर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है।


उस रात की एक और ऐसी ही घटना का सीसीटीवी फुटेज सामने आया है जिसमें स्कूटर पर सवार दो युवकों ने रात में एक युवती को रोका, छेड़खानी की और फिर उसे सड़क पर गिराकर फरार हो गए। मदद की गुहार लगाये जाने पर वहां से गुजरते लोगों ने लड़की को ही दोष दिया और यह कहते हुए आगे बढ़ गए कि यह तो होता रहता है। अगले दिन तक इन वारदातों के घटित होने को नकारा जाता रहा किन्तु पहली घटना के जश्न के दौरान लगे 45 कैमरों के सीसीटीवी फुटेज सोशल मीडिया में वायरल हुए तब इस पर कार्रवाई शुरू की गयी।



यह बात जब बड़े स्तर पर पहुंची तब कर्नाटक के गृहमंत्री जी. परमेश्वर का एक विवादित बयान आया जिसमें कहा गया कि ‘ऐसी बातें होती रहती हैं। सड़कों पर गश्त करने के लिए 10,000 पुलिस वाले तैनात करना मुमकिन नहीं है…’। इससे पूर्व उन्होंने बताया था कि भीड़ पर नज़र रखने और यातायात सुचारू रखने के लिए नए साल की पूर्व संध्या पर 1500 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। इसके बाद बयानबाजियों का दौर चल पड़ा। सपा नेता अबू आजमी ने एक और बात कह डाली। उनके हिसाब से लड़कियां शक्कर हैं तो लड़के चींटी हैं, शक्कर गिरी तो चींटी वहां जरूर आएगी।



बात भी सही है इन नेताओं की। आजाद भारत में आजाद होने का हक लड़कियों को नहीं है। दरअसल आजाद भारत शब्द में ही कुछ गड़बड़ी जान पड़ती है। आजाद भारत शब्द के स्थान पर आजाद पुरूष होना चाहिए था। जहां पर दिन-रात, घर व बाहर, कहना-सुनना व मानना, कार्य विशेष पर वैचारिक एवं व्यक्तिगत अलगाव हो वहां पर स्त्री-पुरूष समानता की बात करना भी मूर्खता ही है। माना जाता है कि रात में निशाचरों का प्रभुत्व होता है इसलिए उस समय बाहर निकलना खतरनाक होता है। तो इस मान्यता को आधार बनाकर यह मान लेना क्या गलत होगा कि ये सर्वमान्य निशाचर शब्द दरअसल पुरूषों के लिए प्रयुक्त किया गया है। अब जब रात में महिलाओं का खुली सड़क पर घूमना अनुचित है तो मतलब तो यही निकाला जाना चाहिए न कि सड़कें रात में खतरनाक जंगलो में बदल जाती हैं जहां पर आदमखोर न केवल महिला व छोटी बच्चियों को नोचने को तत्पर होते हैं बल्कि छोटे बच्चे भी इनसे सुरक्षित नहीं हैं।



बेंगलुरू में घटी ये दोनों घटनाएं वास्तव में बानगी भर हैं। इन घटनाओं का फुटेज देखने वाले कुछ बुद्धजीवियों का मानना है कि जब आधी रात में लड़कियां खुले आसमान के नीचे जश्न मनाएंगी या सड़कों पर घूमेंगी तो लड़कों का इनके साथ अभद्रता करना कोई गलत नहीं। आश्चर्य है, कि, 21वीं सदी के 17वें वर्ष के प्रथम दिन ऐसी धारणा हमारे बीच अभी भी बनी हुई है कि लड़कियों का रात में असुरक्षित होना या कोई अमानवीय घटना, लड़कियों की अपनी गलती है। समझ में नहीं आता कि जब यही लड़कियां आसमान को रौंदती हुई अवनी चतुर्वेदी, मोहना सिंह व भावना कंठ बनती हैं तो हमें उन पर गर्व होता है, किन्तु जमीन पर आते ही इन लड़कियों के लिए हम पर पुरातन पंथी पितृसत्तात्मक विचार धारा हावी हो जाती है।



निर्भया कांड के बाद देश में ऊंचे स्वर से एक आवाज उठी थी कि एक ऐसा कानून बने जिससे इन अपराधियों में डर पैदा हो। हड़बड़ी में जस्टिस वर्मा कमेटी ने एक ऐसे ही कानून की सिफारिश की। इसमें एक ऐसी भी धारा बनी जिसमें लगातार 12 सेकेण्ड तक घूरने वाले व्यक्ति को भी सजा का प्रावधान रखा गया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (डी) के मुताबिक हर वो आदमी स्टाॅकिंग यानी गलत इरादे से एक औरत का पीछा करने का अपराधी माना जाएगा जो एक औरत के साफ तौर पर अपनी असहमति दिखाने के बावजूद उसे संपर्क करने की कोशिश करे, पीछा करें, निजी रिश्ता बनाने की कोशिश करे, ऐसे घूरे या जासूसी करे कि उसकी मानसिक शांति भंग हो और उसमें हिंसा का डर पैदा हो। ऐसी स्थिति में प्राथमिकी दर्ज करवाने के पश्चात कम से एक वर्ष या पांच वर्ष की सजा का प्रावधान है। यह एक गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है।



यहां यह समझना मुश्किल है कि कानून व संविधान द्वारा नागरिक समानता का दर्जा मिलने के बावजूद महिलाओं के साथ दोहरा व्यवहार जो कि सामाजिक स्तर पर अधिक प्रचलित है, कब तक चलता रहेगा। यदि रात व सड़कों पर पुरूषों का एकाधिकार है तो महिलाओं से एक समान टैक्स लेना अनुचित ही है। इसके अलावा सड़कों पर खतरे के निशान वाला बोर्ड लगाना भी उपयुक्त होगा। साथ ही लड़कियों को पर्दे में रहने की सलाह देने के बजाय लड़कों को रात में पिंजरे में रखना चाहिए क्योंकि वहशियों को पिंजरे में रखना सुरक्षा की ही गारण्टी होती है। लड़कियों पर हावी होते होते कहीं ऐसा न हो जाए कि यही लड़किया पलटवार कर बैठें और ये उन्मादी लड़के अधोगति को प्राप्त हो जाएं। सुरक्षा तो हर किसी के लिए आवश्यक है, चाहे वह किसी भी लिंग, जाति, धर्म या नस्ल का हो।



यह जरूरी है कि मोबाइल या फेसबुक न चलाने की हिदायत देने वाले हमारे भारतीय अभिभावक अपने सुपुत्रों को लड़कियों को इज्जत देने की परवरिश भी दें।



लड़कियां कोई डेयरी चाॅकलेट या पिज्जा नहीं कि जरा सा खुला देखा और लपक पड़े। जीवन जीने का सभी का अधिकार है और जीवन शैली चुनने का भी। स्त्री हो चाहे पुरूष, दोनों को अपनी स्वतंत्रता का आनन्द लेने की पूरी आजादी होनी चाहिए। यंगस्टर्स के भारत में अपनी जीवन शैली को दूसरों पर थोपना वैसा ही है जैसा कि दूध के डिब्बे पर सॅास का रैपर लपेट देना। हर छेड़खानी या बलात्कार में दोष लड़की का ही हो, यह जरूरी नहीं। अब ऐसे दुराचार की घटना में नाबालिग लड़कों के साथ बाल यौन उत्पीड़न की घटना में वृद्धि, विक्षिप्त होती मानसिकता का प्रत्यक्ष उदाहरण है। इसलिए घटना के विश्लेषण में भ्रमित मानसिकता का तिरोहण अति आवश्यक है।




(यह आलेख इस वर्ष की शुरुआत में लिखा गया था, किसी कारणवश यहाँ ब्लॉग पर प्रकाशित नहीं कर सकी थी, इसके लिए क्षमा चाहूंगी. लेकिन बनारस हिन्दू विशविद्यालय में हुई ईव टीजिंग की घटना के बाद इसमें लिखे गए तथ्य और कथ्य आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने कि तब थे. )

टिप्पणियाँ

  1. आपका लेख पुराना है किन्तु इसकी प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी । आज भी यह समयोचित है एवं आगे भी रहेगा । कानून बनाने से ऐसी समस्याओं का समाधान नहीं होता है बीना जी वरन कानून का दुरूपयोग नवीन समस्याओं को जन्म दे देता है । जो कानून पहले से विद्यमान हैं, उनका ही उचित रूप से अनुपालन हो जाए तो समस्या कम हो जाए, नियंत्रित हो जाए । बाकी तो मेरा यही मानना है कि इस समस्या का भी और ऐसी अनेक अन्य समस्याओं का भी एकमात्र समाधान नागरिकों का चरित्र-निर्माण है जिसका आरंभ बाल्यावस्था से होना चाहिए एवं बालकों के परिवारों द्वारा होना चाहिए । यदि परिवार एवं शिक्षण-व्यवस्था बालकों को चारित्रिक-बल प्रदान नहीं कर सकते हैं तो उन्हें अवांछित घटनाओं पर छाती पीटने एवं दूसरों पर दोषारोपण करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है । इसके अतिरिक्त केवल लड़कों या पुरुषों को दरिंदों के रूप में चित्रित करना भी समस्या का केवल एक पक्ष है । लड़कियां अपनी ओर से इतना तो कर ही सकती हैं कि चरित्रहीन लड़कों (और लड़कियों की भी) संगत न करें ।

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  2. जी बिल्कुल...लेकिन दोहरे चाल चरित्र वाले लोगों की पहचान कर लेना भी कहाँ आसान होता है माथुर जी!

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