मदनलाल सैनी के जरिये क्या वसुंधरा पर शिकंजा कस पाएंगे अमित शाह ?


शनिवार को जब मदनलाल सैनी को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया तब एक साथ कई राजनीतिक पेंचों को संतुलित करने की कोशिश की गई. 17 अप्रैल को जबसे अशोक परनामी को राज्य बीजेपी के अध्यक्ष पद से उठाकर बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति का सदस्य बनाया गया था तबसे राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष का पद रिक्त ही चला आ रहा था. बीच में जब गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाए जाने पर विचार किया गया तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उस पर वीटो कर दिया. 

बाड़मेर में गैंगेस्टर चतुर सिंह के एनकाउंटर के बाद से गजेंद्र सिंह शेखावत और वसुंधरा के बीच की तल्खियां तब खुल कर सामने आई जब गजेंद्र ने मामले की सीबीआई जाँच की मांग कर दी. इस बात से यह तो साफ़ हो गया कि बीजेपी के रसूखदार नेता गजेंद्र और मुख्यमंत्री के बीच सब कुछ ठीक तो नहीं है. यहाँ पर सरकार के पुलिस तंत्र पर गजेंद्र का सवाल उठाना मुख्यमंत्री पर सवाल उठाने जैसा था जिसके बाद वसुंधरा और गजेंद्र में एक शीतयुद्ध जैसा माहौल देखा गया. 2016 में मोदी सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर राजस्थान में एक रैली हुई जिसमे गजेंद्र ने केंद्र सरकार की जमकर तारीफ की लेकिन प्रदेश की वसुंधरा राजे सरकार का नाम तक नहीं लिया. उसी मंच से वसुंधरा ने अपनी त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि आपको केंद्र सरकार की उपलब्धियां दिखाई देती हैं जबकि आपने राज्य सरकार की उपलब्धियों का जिक्र तक नहीं किया. 

फ़िलहाल 74 दिनों के बाद बीजेपी ने मदन लाल सैनी को प्रदेश का बीजेपी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है. मदनलाल सैनी आरएसएस के धुर नुमाइंदे माने जाते हैं और वसुंधरा राजे से भी उनका कोई टकराव नहीं है. केंद्र की बीजेपी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से भी मदन लाल सैनी की अच्छी बनती है. वह राज्यसभा से सांसद हैं इसलिए प्रदेश में विधानसभा चुनाव में प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगे. स्पष्ट है वह प्रदेश में संगठन को मजबूत करने पर पूरी तरह से फोकस करेंगे. साथ ही माली समाज से ताल्लुक रखने वाले मदनलाल सैनी, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कड़ी टक्कर देंगे. अशोक गहलोत स्वयं माली समाज से हैं और ओबीसी वर्ग पर अच्छी पकड़ रखते हैं. इस तरह मदनलाल सैनी कांग्रेस को अच्छी चुनौती देंगे. 

प्रदेश में कुछ वर्ग वसुंधरा सरकार से नाराज हैं और कांग्रेस के पक्ष में हैं जिससे बीजेपी की दावेदारी को खतरा हो सकता है. राजपूत, जाट और ब्राह्मण वर्ग के समीकरण को संतुलित करने में जुटी बीजेपी का ध्यान ओबीसी वर्ग को भी बीजेपी के पाले में लाने पर केंद्रित है. शायद इन्हीं सब बातों का ध्यान रखते हुए बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने सबको साधने का प्रयास किया है. देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश में उपचुनावों में बीजेपी को मिली करारी शिकस्त को अमित शाह का यह दांव न केवल विधान सभा चुनाव बल्कि आम चुनाव में कैसे जीत में बदलेगा?

बहरहाल 7 जुलाई को राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली है, जिसके पहले प्रदेश बीजेपी ने अपना अध्यक्ष या यूँ कहें अपना सेनापति चुन लिया है. 

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