अस्मत पर भारी पड़ रही सियासत, मंदसौर बलात्कार पर बेटी को कैसे मिले इंसाफ ?

26 जून को मंदसौर में एक सात साल की बच्ची की अस्मत लूट ली गई. अभी वह इंदौर के एक अस्पताल में जिंदगी हुए मौत के बीच झूल रही है. शरीर पर बेदर्दी और दरिंदगी के निशान लिए वह मासूम अपने साथ हुए जघन्य अपराध पर न्याय मांग रही है. पुलिस के पास मामले का केस दर्ज है और दो आरोपी इरफ़ान और आसिफ जेल में हैं. सोशल मीडिया पर बलात्कार आरोपियों को मौत की सजा देने की मांग हो रही है. कानून ताक पर है और कानून निर्माता बलात्कार के मामलों पर जम कर सियासत कर रहे हैं.

बीजेपी के मंदसौर सांसद सुधीर गुप्ता मंदसौर की उस बेटी के घर पहुंचे जिसके साथ यह जघन्य अपराध हुआ है. सियासत की दरिंदगी यहाँ भी जारी है, बीजेपी के इंदौर विधायक सुदर्शन गुप्ता पीड़िता के परिवार से चाहते हैं कि वे सांसद सुधीर गुप्ता का धन्यवाद करें क्योंकि वह उनसे मिलने आए. कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मामले की जाँच सीबीआई को सौंपने की मांग की है. सियासत में गन्दगी यहाँ से शुरू नहीं हुई है. यह अस्मत से खिलवाड़ और उस पर सियासत अक्सर होती रही है. निर्भया, कठुआ, गाज़ियाबाद, इंदौर, हरियाणा, लखनऊ और अब मंदसौर... सियासत अपनी धार चमकाने से कभी नहीं चूका.

जबकि चाहिए ये कि सियासी दल बलात्कार मामलों पर सियासत करने के बजाय इंसानियत दिखाएँ और न केवल बलात्कारियों को कम समय में सख्त से सख्त सजा दिलवाने के लिए एकजुट हों बल्कि भविष्य में ऐसी हैवानियत न हो उसकी भी व्यवस्था करें.

आखिर में, सवाल यह है कि अस्मत पर सियासत कब तक चलती रहेगी ? क्या 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' का नारा 'बेटी छुपाओ' में बदल जाएगा? क्या देश की आधी आबादी की सिसक लोकतंत्र के नारों के बीच दब जाएगी? विकृत मानसिकता वाले बलात्कारी जिनके दिमाग में हवस और सिर्फ हवस ही होता है, उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए कानून अपनी सख्ती कब दिखाएगा? आखिर कब तक मंदसौर की मासूम जैसी कई मासूमियत इस हैवानियत का शिकार हो अपने माँ-बाप से मौत मांगती रहेंगी? क्या इन सवालों के जवाब लोकतंत्र में आधी आबादी को महफूज रखने की गारंटी दे सकते हैं? 

टिप्पणियाँ

  1. मैं आपके विचारों से पूर्णरूपेण सहमत हूँ बीना जी । राजनीति तथा सोशल मीडिया दोनों ही की संवेदनहीनता (और विवेकहीनता भी) अत्यंत खेदपूर्ण है जो भुक्तभोगियों के जले पर नमक छिड़कने का कार्य ही करती है । जो सवाल आपने उठाए हैं, वे ज्वलंत हैं लेकिन हमारे भाग्य-विधाता बने बैठे लोगों को अपने निहित स्वार्थ की उन रोटियों से ही मतलब है जो दूसरों के घरों में लगी आग की आँच पर ही सिकती हैं । निर्बल और असहाय लोगों के साथ हुए अन्याय और अनाचार की गुहार को निष्पक्ष और निस्वार्थ भाव से सुनने वाला कोई दिखाई ही नहीं देता, ऐसे में कहाँ जाएं ये पीड़ित ?

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  2. यही तो त्रासदी है माथुर जी .. सरकारें जब अपना दायित्व भूल जाती हैं तो पीड़ित अपनी गुहार कहाँ लगाएं!फिर जब यही रोष मॉब लिनचिंग का रूप ले लेता है तब भी सरकारें मूक बनी रहती हैं और इसके और ज़्यादा वीभत्स होने का इंतजार करती रहती हैं .

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