जब देश में 'ट्रैक्टर' लाने के लिए अपनी ही पार्टी का चुनाव निशान भूल बैठे थे नेहरू!

दुनिया भर में अपने समय और अपने गुजरे दौर के सर्वकालिक नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू उस वक़्त भुखमरी और विभाजन का दंश झेल रहे भारत के खेतों को अधिक अनाज उत्पादन योग्य बनाने का दृढ़ संकल्प लिए देश की कृषि का आधुनिकीकरण करने की दिशा में आगे बढ़ने का विचार कर रहे थे. भुखमरी से निपटने और अन्न की पैदावार बढ़ाने की समस्या से निपटने के लिए वह दुनिया भर के नामी गिरामी कृषि और भोजन प्रबंधन विशेषज्ञों से बातचीत कर रहे थे. अधिक अन्न उपजाने की इस क़वायद में नेहरू को जो मशीन सबसे जरुरी लगी, वह था 'ट्रैक्टर'

नेहरू यह समझ रहे थे कि उपजाऊ जमीनों का एक प्रमुख हिस्सा सिंध और पंजाब बंटवारे के बाद पाकिस्तान जा चुके हैं. ऐसे में अन्न के संकट को फौरी तौर पर दूर करने के लिए एक निर्धारित योजना, प्रबंधन और समय सीमा की बेहद आवश्यकता है. 

200 वर्षों से अधिक के समय में अंग्रेजी हुकूमत ने सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश की पारम्परिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ कर रख दी थी. लेकिन भविष्यदृष्टा नेहरू ने मौजूदा सरकारों की तरह अपने भूतकाल को कोसने की बजाय आगे चलना तय किया. 

विदेशी मुद्राओं से खाली राजकोष से भिज्ञ नेहरू अक्टूबर, 1948 में इंग्लैंड जाकर हेनरी फर्ग्युसन से मिले. 1909 में खुद के हवाई जहाज से आयरलैंड की यात्रा कर चुके हेनरी उस दौर में ऑटो मोबाइल के क्षेत्र में एक स्थापित नाम थे. उन्हें आज के आधुनिक ट्रैक्टर का पितामह माना जाता है. नेहरू को 1800 करोड़ का हवाई जहाज नहीं बल्कि सस्ते और टिकाऊ ट्रैक्टर खरीदना था. अक्टूबर 1948 से नवंबर 1948 के बीच अपने खाद्य सुरक्षा मंत्री दौलतराम से पत्राचार में ट्रैक्टर के प्रति नेहरू की संजीदगी झलकती है. वह भारत में न केवल ट्रैक्टर खरीदकर लाना चाह रहे थे बल्कि फर्ग्युसन से ट्रैक्टर निर्माण की तकनीक भी ला रहे थे. वह भी सस्ते और भारत की जमीनों के लिए उपयुक्त ट्रैक्टर, फिर चाहे उसे जम्मू-कश्मीर में इस्तेमाल करना हो या उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में. अपनी ट्रैक्टर नीति के लिए नेहरू की गंभीरता इस मायने में भी नजर आती है कि वह राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में इस बात की तफ्सील भी कर लेना चाहते थे कि उनके पास ट्रैक्टर की मरम्मत के लिए जरुरी स्टाफ है या नहीं!

और नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में ही देश में असेंबल किया गया पहला ट्रैक्टर अप्रैल 1959 में फरीदाबाद की फैक्ट्री से निकला. हालाँकि यह फर्गुसन नहीं बल्कि जर्मनी का आइशर था.

यहाँ जब ट्रैक्टर की बात कर रही हूँ तो इतिहास के भूले भटकों को यह याद दिला दूँ कि जिस वक़्त नेहरू देश के खेतों से ट्रैक्टर का परिचय करवाने के जुगाड़ में लगे थे उस वक़्त उनकी पार्टी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह था 'दो बैलों की जोड़ी'.





जवाहरलाल नेहरू भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में ट्रैक्टर चलाते हुए, 2 अक्टूबर 1952। साथ में केएम मुंशी और राज कुमारी अमृत कौर


हाल ही में किसान आंदोलन के समर्थन में ट्रैक्टर से पार्लियामेंट जाते कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी

टिप्पणियाँ

  1. मुझे यह देखकर बहुत प्रसन्नता हुई बीना जी कि आपने एक लम्बे अंतराल के उपरांत लेखनी संभाली और एक अच्छा तथा सूचनाप्रद लेख लिखा। नेहरू भविष्यदृष्टा तथा सच्चे देशप्रेमी थे (दिखावटी और पाखंडी नहीं)। उनके निर्णयों की गुणवत्ता पर तर्क-वितर्क एवं वाद-विवाद हो सकते हैं, उनकी नीयत पर नहीं जो सदैव राष्ट्र एवं उसके निवासियों के हित में ही होती थी। वर्तमान में जैसा (पक्षपातपूर्ण एवं) दोषपूर्ण वैचारिक वातावरण देश में है, वैसा ही ब्लॉग जगत में भी है। ऐसे में आपका लेख अंधेरे में प्रकाश की सूक्ष्म किरण प्रतीत हो रहा है। अभिनंदन। आशा है, आप स्वस्थ, सकुशल एवं प्रसन्नचित्त होंगी।

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