बिना साइंस वाले रोबोट युग में प्रवेश कर चुका है भारत


व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी, सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर जहर उगलती पोस्ट और खुले मंच से पीएम का यह कहना कि 'देश में कोई एनआरसी नहीं आ रही है, कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है', और उनके इस कहे का उनके समर्थकों द्वारा आसानी से मान लेना किसी आकस्मिक योजना का नतीजा नहीं है। हर एक मुद्दे को सांप्रदायिक रूप दे देने और हर सरकार (ध्यान रहे देश नहीं) विरोधियों को पाकिस्तान चले जाने की नसीहत 72 साल पुराना गुबार नहीं जो अब फूटकर निकला है। यह सब यक़ीनन हर हाथ तक इंटरनेट की पहुँच का नतीजा है। वह जरिया जो अपना ज्ञान यूट्यूब, व्हाट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक जैसे मंच से निकल कर एक आम व्यक्ति के भेजे तक पहुँचाया जाता है। 

कल एक अजीज दोस्त (जिसे कभी दोस्त के सिवाय इस नजरिये से नहीं देखा कि वह कुरान पढ़ता है या रोज़ा रखता है) ने कहा कि अब उसे डर लगने लगा है, जिसके अधिकतर दोस्त गीता, रामचरित मानस वाले हैं, और जिसे अब उन्ही के बीच रहते हुए उनसे ही डर लगने लगा है कि कब उनका दिमाग फिर जाए और वह अपने ही दोस्तों के बीच पराया हो जाए! मुझे बहुत तकलीफ हुई, ये किस दशा में आ गए हैं हम! अब दोस्तों की पहचान उनके जन्म से होगी? मेरी तकलीफ तब और ज़यादा बढ़ गई जब मेरे एक बेहद नजदीकी रिश्तेदार से पापा ने पूछा कि तुम्हारे यहाँ भी कर्फ्यू है क्या? रिश्तेदार ने जवाब दिया 'नहीं, यहाँ नहीं है', जिसके बाद पापा ने फिर सवाल किया कि 'का हो, इ सरकार का करती अहै? उधर से जवाब आया 'सब सही कर रही है, कुछ गलत नहीं कर रही'। ये हाल है उस देश का जहाँ त्यौहार किसी भी मजहब का हो लेकिन उसे मनाने वालों का एक ही मजहब होता था 'इंसानियत'। जो कभी सिवइयों में लिपटी होती थी तो कभी होली के रंग और ढोल-ताशों में। 

फिर गूगल को उलटते पलटते हुए 'अमित मालवीय (बीजेपी आईटी सेल के हेड) राजदीप सरदेसाई (वरिष्ठ पत्रकार) और एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया' से जुड़ी एक खबर पर नज़र गई। मन हुआ आईटी सेल के बारे में और जानने-समझने का। फिर और गहराई में गई। पता चला कि जिस व्यक्ति ने बीजेपी आईटी सेल की नींव डाली थी उसी प्रोद्योत बोरा ने मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के महज 8 महीने बाद इस्तीफ़ा दे दिया था। उसका कारण प्रोद्योत बोरा ने बड़ा दिलचस्प बताया। प्रोद्योत बोरा ने कहा कि ''पार्टी पागल हो गई है, वह किसी भी कीमत पर जीत हासिल करने के लिए पार्टी के संस्कार और संस्कृति को तबाह कर रही है। यह वह पार्टी नहीं है जिसे मैंने 2004 में ज्वाइन किया था''। लिंक 

13 जून 2018 में हफिंगटन पोस्ट पर इस बात की पड़ताल करते हुए एक लेख प्रकाशित किया गया है। जिसमे यूपी बीजेपी के वाईस प्रेजिडेंट जेपीएस राठौर का एक अजीबोगरीब कथन दिया गया है। वह कहते हैं कि ''हमारी राजनीति थी कि चुनाव के पहले वोटर के दिमाग को कैप्चर कर लो। सुबह-शाम मैसेज भेजो। जब देखे, हमारा चेहरा देखे, हमारी बात सुने''। यह वह दौर था जब 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी हो रही थी और बीजेपी गोरखपुर की अपनी पुरानी लोकसभा सीट सपा गठबंधन के हाथों खो चुकी थी। देखने वाली बात यह भी है कि उपचुनावों में लगातार मात खा रही बीजेपी लोकसभा चुनाव में इतने भारी बहुमत से कैसे वापस आई? बेरोजगारी, व्यवसाय और आर्थिक मंदी के बावजूद लोगों का ध्यान साम्प्रदायिकता, पाकिस्तान और आस्था में उलझा हुआ है? कैसे जो लोग साथ बैठकर अपना सुख-दुःख बांटा करते थे वही देशद्रोही-देशप्रेमी के दो धड़ों में बंट रहे हैं? कैसे सरकार की हर नीति धर्म की कसौटी कसती नज़र आती है और एक बड़ी आबादी इसी में अपना लिए उत्सव तलाश लेती है? 

यह सब कोई गुबार नहीं जो अचानक फट पड़ा हो, यह वह जहर है जो सुबह-शाम लोगों की अंतरात्मा तक पहुंचाई जाती है और फिर वोट के रूप में वसूली जाती है। साहब! ईवीएम कैप्चर नहीं हुआ, समय और संसाधन के अभाव में जी रहे लोगों का दिमाग कैप्चर हो रहा है। मशीनी रोबोट बनने और उसके आम होने में अभी विज्ञान को काफी समय लग सकता है लेकिन आईटी सेल की खुराक ने इंसानी रोबोट बना लेने की शुरुआत कर दी है। इसलिए अगली बार जब कोई आपका अपना कोई भी करीबी आग उगले तो समझदारी इसी में है कि उसे रोबोट मानते हुए उसे फिलवक्त के लिए उसके हाल पर या तो छोड़ दिया जाय या फिर प्रेम से आहिस्ता-आहिस्ता उसकी रॉबोटियत को पठन-पाठन के जरिये दुरुस्त किया जाय। 

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