मेरा खुराफाती दिमाग और उसी से उपजा सवाल-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल फ्रांस में एक फॉर्मूले को इज़ाद किया। INFRA = In (India)+Fra (France) । खैर वो मोदी हैं, उनके फॉर्मूले वही जानें। लेकिन मेरे खुराफाती दिमाग में उनके INFRA से एक नयी बात ने जन्म लिया। आज भारत के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का निधन हो गया है। जेटली अक्सर ही GST, नोटबन्दी जैसे मोदी कार्यकाल के बड़े आर्थिक फैसलों के लिए विपक्षियों व अर्थशास्त्रियों के निशाने पर रहे हैं। आज उनकी मृत्यु के बाद सोशल मीडिया तीन धड़ों में बंटा हुआ है।  कोई उनकी महानता गिना रहा है तो कोई भारत की खस्ता हाल अर्थव्यवस्था के लिए उन्हें दोषी ठहरा रहा है। एक तीसरा धड़ा है जिसे जेटली का कोसा जाना इसलिए बुरा लग रहा है क्योंकि उसे लगता है कि किसी भी व्यक्ति के निधन पर उसे नहीं कोसना चाहिए। 

मेरे खुराफाती दिमाग में इसी तीसरे धड़े के लिए जो बात कौंधी वह संयोग से फ्रांस से ही जुड़ी हुई है। जी हाँ.. फ्रांस से। फ्रांस के राजशाही शासन में एक राजा था, जिसे लुई 16वां कहा जाता है। कहा जाता है कि वह एक निरंकुश राजा था। उसकी पत्नी थी, रानी मैरी अंत्वानेत। दोनों ही जबरदस्त खर्चीले राजशाह थे। उनके राजशाही खर्चे को पूरा करने के लिए फ्रांस की जनता से जबरदस्त टैक्स वसूले जाते। जनता तीन तरफ से पिस रही थी। राजा, सामंत और पादरी वर्गों ने उनका जीना मुहाल कर दिया। इधर जनता भूख से बिलबिला रही थी और उस पर मनमाने टैक्स ठोंके जा रहे थे उधर रानी मैरी अंत्वानेत और लुई 16वें की शान ओ शौकत में कोई कमी नहीं थी। एक दिन जनता राजा के महल के बाहर इकट्ठी हो गई। ब्रेड-ब्रड की आवाज मैरी अंत्वानेत के कानों तक पहुंची। उसने अपनी दासियों से पूछा, यह कैसी आवाज है? उन्होंने जवाब दिया "फ्रांस की जनता है, उनके पास खाने को ब्रेड नहीं है'। रानी ने कहा 'फिर उनसे कहो केक खा लें!'। इधर जनाब लुई 16 वें भी कान में रुई डाले पड़े रहे। 

जन विरोध के चलते हालाँकि बतौर सेफ्टी वॉल्व लुई 16 वें ने एस्टेट्स जनरल जिसकी आखिरी बैठक 175 साल पहले हुई थी, को फिर से बुलाया। बहुमत के अड़ंगे ने सामान्य वर्ग को नोबल और पादरी से अलग कर खुद का एक संगठन बनाने पर विवश कर दिया। अब सामान्य वर्ग ने 'नेशनल असेंबली' का गठन किया और अपनी मांगों को रखने का प्रयत्न किया। शुरुआत में लुई 16 वें ने इसका तगड़ा विरोध किया लेकिन आखिरकार उसे घुटने टेकने पड़े और जनरल असेंबली को मान्यता देनी पड़ी।

जनरल असेंबली को अपनी एकता में यह पहली बार दिखा कि उनकी एकता के सामने एक निरंकुश राजा घुटने टेक रहा है तो वह और भी तन गई और अपनी आवाज तेजी से बुलंद करने लगी। 14 जुलाई 1789 को उसकी अगुवाई में फ्रांस की जनता ने बास्तील के किले में कैद कैदियों  को आज़ाद कराकर मुनादी पीट दी। फ्रांस के इतिहास में इसे एक ऐतिहासिक दिन माना जाता है और 14 जुलाई को राष्ट्रीय दिवस। फ्रांस की क्रांति हो चुकी थी, जनरल असेंबली राजा की तानाशाही को उखाड़ फेंकने को एकजुट हो गई थी। तमाम उतार-चढ़ावों के बाद आखिरकार पहले मैरी अंत्वानेत और फिर लुई 16 वें को गिलोटिन के तख्ते पर पहुंचा दिया गया। राजशाही ख़त्म हुई और पूरी दुनिया को फ्रांस की क्रांति से निकला लोकतंत्र का अमृत ज्ञान 'स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व' प्राप्त हुआ। 

इतना लम्बा चौड़ा लिखने का कुल मतलब यह है कि व्यक्ति जो सार्वजनिक जीवन से जुड़ा होता है और जनता द्वारा दिए गए जवाबदेह से लबरेज जिम्मेदारी के सूत्रों से बंधा होता है, उसके इस दुनिया में होने और दुनिया से जाने के बाद उसके कार्यों का जन आकलन होना लाजिमी है। ऐसे में यह कहना कि अभी नहीं बाद में करना चाहिए, तो बताएं कि तेज गति से चल रहे समय के बीच क्या किसी के पास इतना समय है कि वह अनायास पीछे मुड़कर देख भर ले? क्या सुषमा स्वराज की मृत्यु के बाद उनके कार्यों के मूल्यांकन से जुड़ी कोई पोस्ट देखने को मिली? 

तो जिसके समय में कतार में खड़ी जनता को तमाम तकलीफें झेलनी पड़ी हों, GST को सही ठहराते-ठहराते भारत की अर्थव्यवस्था को लेने के देने पड़ रहे हों, उसके कार्यों का मूल्याङ्कन होने का सही समय यही है, क्योंकि आगे तो वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की कार्य कुशलता भी तो देखनी है ना!

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