दायरों के साथ ही बढ़ी हैं हिंदी पत्रकारिता की चुनौतियाँ और जिम्मेदारी


हिंदी पत्रकारिता के लिए आज का दिन बेहद खास है. आज ही के दिन 192 साल पहले यानी 30 मई, 1826 को पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से प्रथम हिन्दी समाचार पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन आरंभ किया था. इससे पहले अंग्रेजी, बंगाली और फारसी भाषा में समाचार पत्र मौजूद थे लेकिन हिंदी के समाचार पत्रों का अभाव था. लोगों तक हिंदी अख़बार की पहुँच का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन पत्रकारिता जगत के इस एकमात्र हिंदी अख़बार का प्रकाशन पूँजी व पहुँच न होने के कारण उसी वर्ष 4 दिसंबर को बंद करना पड़ा था

उसके बाद राजा राममोहन राय, द्वारका प्रसाद ठाकुर व नीलरतन हालदार द्वारा 1829 में दूसरा हिंदी अख़बार 'बंग दूत' के नाम से प्रकाशित किया गया. यह अख़बार हिंदी, बांग्ला और फारसी भाषा में छपता था.

इसके बाद हिंदी पत्रकारिता को अपनी भाषा, स्थान और हिंदी माध्यम के पाठकों तक हिंदी अख़बार की सामान्य पहुँच न होने के कारण बहुत संघर्ष करना पड़ा. आज न केवल भारत में बल्कि विश्व के कई देशों में हिंदी अख़बार छपते हैं बल्कि उसका दायरा भी काफी बढ़ा है.

हज़ारों-हज़ार हिंदी अख़बार आज लोगों की सुबह की चाय के साथ पढ़े जाते हैं. समय के साथ हिंदी पत्रकारिता का स्वरुप बदला है. आज समाचार पत्र, पत्रिका, न्यूज़ चैनल और वेबसाइट के जरिये हिंदी पत्रकारिता का दायरा दुनिया के हर कोने में पहुँच चुका है. इसी के साथ बढ़ी है हिंदी जगत के पत्रकारों की जिम्मेदारी भी.

हिंदी पत्रकारिता का यह दायित्व बनता है कि वह अपने पाठकों का भरोसा बनाये रखे. हिंदी पत्रकारिता ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखा है. हालिया वक़्त में एक बार फिर से हिंदी पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं. कोबरा पोस्ट का स्टिंग इसका उदाहरण है.

इसी तरह चुनाव के दौरान विज्ञापन के लिए होने वाली पीत पत्रकारिता भी हिंदी पत्रकारिता और उसकी विश्वसनीयता के लिए खतरनाक हैं. ठीक इसी तरह जनता के असल मुद्दों से इतर कॉर्पोरेट जगत के उत्पादों का झूठा प्रचार भी न केवल हिंदी पत्रकारिता बल्कि हर भाषा की पत्रकारिता के लिए जबरदस्त खतरा पैदा करती हैं.

किसान, बेरोजगारी, शिक्षा, सामाजिक न्याय और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत मुद्दों को अपेक्षा से कम महत्त्व दिया जाना हिंदी पत्रकारिता के दायित्व को चुनौतियाँ पेश करते हैं. हालात यह है कि बुद्धिजीवी वर्ग जो मुद्दों की तलाश में खबरों की ओर रुख करते हैं उनकी प्राथमिकताओं में हिंदी के अखबार या इसका किसी भी स्वरुप को जगह नहीं मिलती है.

ऐसे में यह जरुरी हो जाता है कि जनता के बीच हिंदी पत्रकारिता के सही उद्देश्य को पहुँचाया जाये. उन मुद्दों को जगह मिले जिससे एक अच्छा ख़ासा वर्ग प्रभावित होता है. चाय की चुस्कियों के बीच पढ़े जाने वाले ये अख़बार सुबह-सुबह सरकार की नीतियों, उनके सही कार्यान्वयन, देश-दुनिया की सही जानकारी भी अपने पाठकों को मुहैया कराये.

ऐसा नहीं है कि हिंदी पत्रकारिता ने अपने मायनों को भुला दिया है. क्योंकि अगर ऐसा होता तो अब तक हिंदी पत्रकारिता कब का पानी मांग चुका होता. लेकिन ये नाम उँगलियों पर ही गिने जा सकते हैं.

आज हिंदी पत्रकारिता दिवस पर क्यों न हर एक हिंदी जगत का पत्रकार ये प्रण ले कि वह 'उदन्त मार्तण्ड' और इसके बाद आने वाले हर औचित्यपूर्ण पत्रकारिता के उद्देश्य पर पानी नहीं फिरने देंगे. साथ ही उँगलियों पर गिने जा सकने वाले हिंदी जगत की ईमानदार पत्रकारिता को हर हाथ तक पहुँचाने का पूरा प्रयास करेंगे.

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