Valentine Day- प्रेम का प्रतीक

फरवरी माह अपनी शुरुआत से ही कथित प्रेम का खुमार लेकर आता है। आशय यह है कि दुनिया भर के प्रेमी अपने अपने प्रेम को को अभिव्यक्त करने के लिए फरवरी माह विशेषकर १४ फरवरी का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।

मान्यता है कि वर्षों पूर्व रोमन सम्राट ने संत वेलैंटाइन डे १४ फरवरी कि तारीख को सिर्फ इसलिए सूली पर चढ़ा दिया था क्योंकी संत वेलैंटाइन दो प्रेमियों को उनके प्यार को पाने में साथ दे रहे थे , जिसका तत्कालीन रोमन समाज कड़ा विरोध कर रहा था। ये भी मान्यता है कि तभी से दुनिया भर के प्रेमियों ने १४ फरवरी को संत वेलैंटाइन कि शहादत को प्रेम दिवस के रूप में मानना आरम्भ कर दिया।

समय-समय पर सवाल उठता है है कि ये भारत में कब , कैसे, और किसके ज़रिये आया। फिलहाल अभी इसका कोई निश्चित प्रमाण नही मिलता।

भारत अपनी सभ्यता, संस्कृति व कथित लोक लाज (मर्यादा) के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसी लोक लाज को बनाए रखने के लिए कुछ भारतीय विद्वान् वेलैंटाइन डे को 'पश्चिम का ढकोसला व खतरा बताकर इसका विराध करते हैं। कुछ संगठन ' वेलैंटाइन डे' के दिन भारतीय सभ्यता को बचने कि आड़ में तमाम तोड़फोड़ व हिंसात्मक रवैय्या अपनाकर आतंक व अव्यवस्था फ़ैलाने का काम करने लगते हैं।

यह तो हुई कुछ भूत, वर्त्तमान व भविष्य कि बातें, चलिए अब थोडा सा अल्पविराम लेकर ज़रा सा पीछे चलते हैं।ज्यादा नहीं बस वहां तक जहां के समय कि दुहाई देकर कथित मर्यादा को बचने की जंग छिड़ी हुई है। सर्वप्रथम बात करते हैं प्रेम की अभिव्यक्ति के औचित्य व अनौचित्य की । भारत में प्रेम को ही सत्य और प्रेमी को ईश्वर (श्रीकृष्ण) को ईश्वर मानते हैं। श्रीकृष्ण ने कन्हैया बनकर बरसाने में प्रेम कि जो बयार चलाई वह आज भी वहां के पत्ते पत्ते में हिंडोले भरते नज़र आते हैं।

टिप्पणियाँ

  1. बीना जी,

    मैं आपके विचारों की कद्र करता हूँ । प्रेम ना तो कभी किसी के रोके रुका है ना कभी किसी के रोके रुकेगा । भारत में 'वेलैंटाइन डे' का सालाना विरोध निहित स्वार्थों से प्रेरित है । विचित्र बात है कि घृणा करने से कोई नहीं रोकता लेकिन प्रेम करने से रोकने के लिए संस्कृति की दुहाई देकर प्रेमियों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है ।

    जितेन्द्र

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